Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 119
________________ रिठ्ठणेमिचरिउ मोकल्लहि सहसा सीराउह जें तवि लग्गमि सररुह-सम-मुह ८ घत्ता तुज्झ पसाएण तव-सिरि-वहु महु करु पावइ । सिग्घु अविग्घेण सुह-णिहि सवडंमुहु आयउ ।। [२३] तं सिद्धत्थ-वयणु णिसुणेवि चवइ रामो। जइ भो वच्छ वच्छ तुहुँ मणि विरत्त-कामो ॥ १ (हेला) तो महु पडिवण्णइ वसण-कालि वलवंति वियंभिइ मोह-जालि धुअवहिए लहु सग्गहो वि पज्ज ___मम चित्तहो संवोहणु कुणेज्ज तं पडिवज्जेवि बलहद्द-सिक्ख सिद्धत्थे तक्खणि लइय दिक्ख तउ करइ विसेसें घोरु वीरु तणु ल्हसइ ल्हसइ णउ मणु वि धीरु ४ गय जिणु पणवेवि वल-वासुएव णिप्पह गह-मुक्क रविंदुं जेव णं विजु-झडप्पिय गिरिवरिंद णं मयवइ-पच्चेडिय करिंद णं विणयासुय-मोडिय फणिंद णं णिण्णासिय-वय-भर मुणिंद रयणी सुण्णइं णं हरिय-वित्त णं खल-वयणे सज्जण दुचित्त जिह सरसिय सिय-करणेण भिण्ण तिह हरि-बलिणो इंदिय-विसण्ण घत्ता उविण्ण सइत्ता रज्ज-कज्ज-आउल-मइ। सुअ-वक्ख-सरीर परिवज्जिय-उच्छव थिय॥ [२४] एत्तहे समवसरण-परिमंडिउ विहरेइ जिणवरिंदो। जिह पंच-मग्गेण उडुगण-जुओ णिसियरिंदो ॥१ (हेला) जो जणु दारावइ पव्वइड तें सहुं अमरासुर-णर-महियउ चउविह-संघ-सहिउ परमेसरु उत्तरदेसि चलिउ जग-णेसरु चरम-सरीरु महा-गुण-जुत्तर वर-अइसय-विहूइ-रेहंतउ वसु-विह-पाडिहेर-विलसंतउ भवियण-पुंडरिय-वोहंतउ वसु-दह-दोस-असेसहं चत्तउ सिवउरि-सिरि-माणिणि-रइ-रत्तउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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