Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 118
________________ तिउत्तर-सउमो संधि घत्ता पुणु णिव्वेइउ गउ पुव्वएसु असंहतउ । तव-माहप्पेण थिउ णिय-सरीरु सोसंतउ ।। [२०] ताम जरासुओ वि वसुएव-सुउ एव मण-पियारो। डोल्लइ णिय-मणेण पुणु पुणु वि जरकुमारो॥ १ (हेला) एहु णारायणु महु लहुउ भाइ राहवचंदहो सोमित्ति णाई चक्केसरु जायव-सामिसालु हरिवंसुद्धारणु धरणिपालु किय-वहु-साहसु विद्दविय-देहु हेला उवलद्ध-महा-विरोहु जहिं महु करि मरइ खगिंद-गमणु तर्हि आयहो पासिउ कंडु(?)कवणु ४ जहिं हउं णिग्घिणु सइ-लच्छि-संगि पहरेसमि महुसूयणहो अंगि तहिं वार वार किं बोल्लिएण किं महुमह-हियवइ डोल्लिएण लहु गम्मइ एक्कंगणइ तित्थु मेलावउ कहिं वि ण होइ जेत्थु जम्महो वि ण सुव्वइ जेहिं पवत्ति जहिं कहि वि ण सयणहो तणिय तत्ति ८ घत्ता एवए चिंतेवि भाइ-सोयावरु हरि-पासहो॥ वाण-धणुद्धरु गउ दूरु दुग्ग-वण-वासहो॥ [२२] थिय पिय णलिणि-लोयणे मत्त-मय दिहारे(?)। आउलिय हूय माणसे पवसिए कुमारे ॥ १ (हेला) गुरु-भायरहो तणेण विओएं अण्णु वि दिक्खंकिय-सुहि-लोएं कण्हु सुण्णु मण्णइ अप्पाणउं वंसहरु व कोमाणउ माणउं मण्णइ सोय-असेसह कारणु सोय-विओय मइंदु भयावणु मण्णइ सयल वि सावय सावय । सेस-सयण जायव पासावय मण्णइ सेसप्पियई वण-वेल्लिउ करदल-थणफल-णहकुसुमिल्लिउ तहिं अवसरि सिद्धत्थु अकायरु । सारहि बलएवहु लहु भायरु तेण वुत्तु एरिस-संसारए ण वि सक्कमि अच्छणहं असारए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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