Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ तिउत्तर-सउमो संघि १११ धम्मामइ तिलोउ सिंचंतउ काह मि दंसण-मग्गु कहतउ दंसणि-जण-मण-धत्थु(?)धुणंतउ काह मि वय-पासाए थवंतउ घत्ता ४ । काह मि सामाइउ वज्जरइ काह मि पोसहु उच्चरइ। सचित्त-चाउ काह मि जणहं फेडंतु वि भव-भमण-रइ ।। [२५] काह मि दिण-मेहुण-णिवित्ति पयडंतो। काह मि सव्वायरेण वंभज्जणु महंतो॥ १ (हेला) काह मि आरंभाइय-वज्जणु तहं अणुमइ परिचाय-समजणु तह परिगह-णिवित्ति साहइ जिणु तह उद्दिट्टाहार-विवज्जणु सावयाहं सावय-वय देंतउ सावयाहं गिह-धम्मु कहंतउ काह मि देंतु महव्वय-सारई चउगइ-गमण-भवण-विणिवारइं उग्गिरंतु दह-लक्खण-भेयई विसहो विसेसरु णेयाणेयई काह मि चक्कि तवई उग्गीरइ वणयराहं जिण विसु पच्चीरइ(?) एम असेसु लोउ वोहंतउ सुर-विसहर-णर-मणु खोहंतउ विहरइ जिणवरिंदु भय-चत्तउ अवियल-वोह-दिट्ठि-संजुत्तउ घत्ता महुमहाणिसंतु जो पव्वइउ णिण्णासिय-भव-भवण-रइ। रायमइ-गणिणि-सयासि थिउ भाव-विसुद्धिए तउ तवइ । [२६] पज्जुणाइ-मुणि-गणा दुविह-गंथ-चत्ता ते जिणवर-सयासि णिप्पह-मण दुद्धरु तउ तवंता॥१ (हेला) एत्तहे दारावइ जो जणवउ जिणवर-भासिए मइ-णिच्चलु थिउ भविय-सत्तु आसण्ण-भवण्णउ भाविय-उवसमु वज्जिय-दुण्णउ दाणु पूय सुह-भावासत्तउ दुण्णय-णय-वसणाइ-विरत्तउ जिणवर-भासिउ णलिउ(?) चवंतउ भव-तणु-धण-वेराउ वहंतउ भंगुरयरु तिलोउ भावंतउ विसय-कसायइं दूरे चयंतउ ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122