Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 112
________________ १०३ तिउत्तर-सउमो संघि जेण समरि सिसुपालु विहाइउ जेहिं वीरु भूरीसउ घाइउ जेहिं णिहउ ससेण्णु चक्केसरु मारिउ जेहिं चाणु कलि-केसरु अप्पमाण विस्संभर गोयर सेव करंति जाहं विज्जाहर जाहं परिग्गहि सई मयरद्धउ विजउ जाहं पसिद्धउ सिद्धउ पेसणु करइ जाहं चक्काउहु जाहं मज्झि णवमउ सीराउहु जेहिं कोडि-सिल चिरु उच्चाइय। जाहं कित्ति तइलोक्कि ण माइय जाहं पमाणु णाहि परिवारहो अंतेउरहो विसालंकारहो घत्ता जिण-माहप्पेण ते सयल वि णिरु अणुराइय । णर वक्खारहो एक्क-देसे जे सम्माइय॥ १२ [१०] पुणु पुच्छइ महीसरो सयल-लोयपालो। महुर-महा-झुणीए अक्खइ तिलोयपालो॥ १(हेला) किं इह तिहुयणे सारु भडारा धम्म-रयणु भो महिहर-धारा किं दुल्लहु भव-लक्खेहिं जिणवर पव्वजा-णिहाणु हे सिरिहर किं सुहु लोयालोय-महागुरु वाहरिउ अहो मुसुमूरिय-मुरु के जीवहो वइरिय तित्थंकर कोह-मोह-मय अच्छी हरिहर किं पालणीउ एत्थु सव्वण्ह धुउ सम्मत्तु सीलु अइ विष्णु किं सुंदरु करणिज्जु दयारुह दाणु पुज्जहो देवइ-तणुरुह के दूसह तियसेसर सामिय पवर-परीसह खगवइ-गामिय किं वलवंतउ समर-विमद्दण जीवहो चिर-कय-कम्म जणद्दण कवणु देउ केवल-वर-लोयण दोस-विवज्जिउ हो महसूयण कवणु धम्मु जगि णाणुप्पायण जीवदयावर हे णारायण किं संसारहो मूलु णिरासव गुरुउ पमाउ सुणहि मणि केसव किं कट्टयरु सिद्धि अज्झाहव अण्णाणत्तणु जउवइ माहव ८ १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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