Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 107
________________ तिउत्तर-सउमो संधि [तिहुवणे जइ वि ण होतु णंदणो सिरि-सयंभुएवस्स । कव्वं कुल-कवित्तं तो पच्छा को समुद्धरइ॥] ता महि-मंडलि वम्मीसर-सर-विणिवारउ। णेमि जिणेसरु विहरइ णं रिसहु भडारउ ॥ १ पइसेवि मज्झएसु-स-मच्छहु पुव्वएसि जाएवि। धम्मे वइस-दिय-खत्तिय-असेस लाएवि॥२ सहसद्दालए सुल-वल-पवले हलि-हर-वल-कुल-सहस-वले सयलामल-केवल-णाणवले सल-साल-विंद-सुकुमाल-कले दूलयलोसालिय-काम-सलि सासय-सिलि-जयसिरि-वहुय-वले संसाल-सायरा-सामल-सइलि पलिहलिय-स-भज्जा सेसयलि ४ उज्जेंतह बलहले तित्थयले उद्धरिय-सयल-भवि-उहय-कुले णासिय-संभव-जल-मलण-दले चिल-भव-सय-खल-वहु-दुलिय-मले गोलव-थेणासण-चंद-मले विणिवारिय-सल्लत्तय-समले तियसिंद-णमिय-कम-भामलेसि जय-मंगल-दव्व-पुव्व-कलेसि ८ (मागधिका-णाम-वि +++?) घत्ता कालेण सहुं गणिहिं भमेप्पिणु आइउ । पुणु वि पडीवउ रेवइ-उज्जाणु पराइउ ।। [२] जं उजिंत-महीहरे परमगुण-सणाहे थिउ हरि भूसणु तिहुयणेक्क-णाहे ॥ १ (हेला) तं हलिसियंगि सिलिवच्छाए इंदीवल-दल-सलिलच्छाए पलिभूसिय-सिलि-हलिवंसाए अमलासुल-दिण्ण-पसंसाए पूयण-मलट्ट-कय-वहणाए वायस-णिप्पेहुण-कलणाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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