Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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छुडु छुडु जि पलंविय - पाणि जाम
तें दीसइ अहिणव-परम-सवणु णिक्कंपु णाई कंचण - गिरिंदु पुणु णिय-सु-सोयंकिय-मणेण एहु मम दिणिविणास - करणु पाविडुदुडु मारमिण जाम एहु चिंतेवि आसु समल्लिएवि णिहरु णिउ कारणु करेवि तो मत्थइ बंधेवि खणिण पवरु
घत्ता
पुणु गउ सो महिएउ साहुहिं केरउ णाई
[१७]
सवणु वि झाणग्गि-पलित्तउ
वहु-इंगाल-दड्डु थक्कउ
विकंप ण वि गहण (? झाणहो) जं किर कालंतरि णिखमेसइ तं विहि-घडियहिं मज्झि अणुच्छिउ उप्पण्ण सहसति पहाणउं पावविउउपरमेत्त दियत्तणु (?) खणे परमेट्ठि - सुसोहिय - मग्गहो गंधाइ तो तणु किय-सेवेहिं
तं अवयासु सुवि उभा हत्थ करेवि
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णिय - णयरु परत्त - विरोहउ ।
चउ-घाइ - कम्म-संदेहउं ॥
सोसोमसम्म दिउ आउ ताम मण-चवल - विसय-कयवियलिय-मउ णाई महा-करिंदु चिंतविउ सरोसें बंभणेण
घत्ता
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तव चरणहं कारणु राय-हरणु कउ हियवहो महु संतोसु ताम खिल्लहिं खिल्लिय कर कम णिएवि णिग्गउ सुणिसुणि सो सेणु लेवि ८ किउ जलिय - विहाणिंगाल - सिहरु
-
णिम्मल - चित्तउ
थिर (?) मणु थक्कउ चल्लइ धीर ण मिल्ल
कम्म डस
खयहो पमिच्छउ (?)
केवल - णाणउं
[सो धण्णत्तणु ]
गउ लोगो
पुज्जिउ देवेहिं
सहसा परिवड्डिय-सोएं। धाहाविउ जायव - लोएं ॥
रिट्ठणेमिचरिउ
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- विसम-दमणु
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