Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 104
________________ बिउत्तर - समो संधि अवरु वि जं जं किंपि मेल्लेप्पिणु जसु धम्मु घत्ता तो एव्वहिं जिणणाह वर-तव-चरण- सयत्तु एउ चिंतेवि यणाणंदणेण तं भणिउ णमेव पुणु मिणाहु णय - णिवह लिउ णिणट्ट - णेहु णव - णीरवाह - णिरु-णील- देहु उणयहिं वर- विट्टर - णिवण्णु णर-णारि - सुरासुर - णमिय- पाउ ++ एम पयंपेवि सुरहं अनंतहं पिक्खंतहं सव्वह मि दसारहं तइलोक्कब्भंतरि दीसइ । तं णिविसेण विणासइ ॥ Jain Education International [१४] एक्कहिं दिणे सो साहु पिणु भीम- मसाणु घत्ता (सिंघवी भासा ) पिक्खंतहं मयरद्धय - वाणहं पिक्खंतहं दुंदुहि अंकूरहं पिक्खंतहं हलहर - हरि-वीरहं पिक्खंतहं अवरह मि असेसहं जिह सो तिह दुमरायहो सुयमइ तिह सा सोमसम्म - दिय दिणि देवय- णिवणंदणि णंदणेण णिरुणिरुवम- णिम्मल - णाण- वाहु संपुण-पुण्ण-वित्थिण-गेहु ++++++++++ दुइ दस-दस - तित्थयराहिगण्णु णिण्णासिय उरु णव - णोकसाउ भविययण - णयण - णव - - णलिण-१ भीयरु संसारहं तट्ठउ । हउं तुम्हहं सरणु पइट्ठउ ॥ [१५] पिक्खंतहं पि हु राम - अनंतह पिक्खंतहं सणि संव- कुमारहं पिक्खंतहं जर संवु- सुभाणहं पिक्खंतह सव्वहं सुइ- सूरहं पिक्खंतह इम विण्णि-णरेसहं वरत्तो यासि दिक्खंकिउ सव्वज्जिय सा कण्ण पहावइ तविण विहूसिय नयणाणंदिणि घत्ता जम- संजम - संजोएं | थिउ रयणिहिं पडिमा जोएं || For Private & Personal Use Only ९५ ११ ४ - भाणु www.jainelibrary.org

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