Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 106
________________ बिउत्तर-सउमो संधि [१८] गय-मरणु सुणेवि आउल-मइए धाहाविउ जणणिए देवइए धाहाविउ सकलुणु रोहिणिए धाहाविउ रामहो रोहिणिए धाहाविउ सयल-दसारुहेहिं धाहाविउ णंदहो गोदुहेहिं धाहाविउ रइ-रुप्पिणि-सिविहिं धाहाविउ मंति-णराहिवेहिं धाहाविउ वल-णारायणेहिं धाहाविउ सिणि-दीवायणेहिं धाहाविउ जर-मयरद्धएहिं धाहाविउ विजाहर-सएहिं धाहाविउ उद्धव-सच्चएहिं धाहाविउ दारुइ-दंदुहीहिं धाहाविउ हरि-अंतेउरेण धाहाविउ सयलेण वि पुरेण घत्ता गयकुमार-मरणेण जायवहं दुक्खु तहि जेहउ। णेमिहे तव-चरणे वि मणे हूयउ दुक्कर तेहउ॥ [१९] देमइ-लहुय-तणउं सुमरंतेहिं एक्कमेक्क खणे विणिवारंतेहिं णेमि णमेवि समुद्दविजयाइहिं पव्वजिउ महंतु णव-भाइहिं सिवएवी-पमुहहिं अंवेविहि(?) पव्वज्जिउ दसार-महएविहिं सच्चइ-देमइ-रोहिणि-सहियहिं पव्वज्जिउ वसुएवहो दइयहिं हरिबल-णंदणीहिं ससिमुहियहिं पव्वज्जिउ सयासि-रायमइहिं सुहि-विओय-वरसोयक्कमियहिं पव्वज्जिउ सत्तुत्तम-भवियहिं जिंदिय-चउगइ-भवसंसारेहिं पव्वजिउ वहु-रायकुमारेहिं वर-विज्जाहर-कंत-सहासेहिं पव्वज्जिउ विज्जाहर-राएहिं सज्जण-खंडण-हुय-णिव्वेएहिं पव्वजिउ जायवेहिं अणेएहिं घत्ता जिण-भायरेहिं मि सिग्घ सत्तेहि-मि जणेहिं पचंडेहिं। पंचमुट्ठि-वर-लोउ सिरि दिण्णु सई भुअ-दंडेहिं॥ १० इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए तिहुवण-सयंभु-महाकइ-विरइए गयकुमार-निव्वाण-गमणं बिउत्तर-सउमो संधि ॥ *** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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