Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 19
________________ चउणवइमो संधि पंडव दाहिण-महुर गय वारवइहिं पइट्ठ जणद्दणु । ताम ण णावइ केण णिउ अणिरुद्ध अणंगहो णंदणु ॥ [१] स-भुव-वसीकय-णरवर-विंदहो अत्थाणत्थहो तहो गोविंदहो केण-वि कण्णउडंतरे सीसइ देव देव अणिरुद्ध ण दीसइ चउ-दिसु विदिसु पत्ति परिपेसिय तेहिं वसुंधर सयल गवेसिय पडिणियत्त विण्णत्तु जणद्दणु कहि-मि ण दिडु अणंगहो णंदणु तहिं वाहाउव्वाहुल-वाहें मुक्क धाह दारावइ-णाहें मुक्क धाह देवइ-वसुएवेहिं मुक्क धाह रोहिणि-वलएवेहिं मुक्क धाह रुप्पिणि-पज्जुण्णेहिं सिव-समुद्दविजय-मुह-वुण्णेहिं मुक्क धाह पट्टणेण असेसें मुक्त धाह णियडेण विसेसें ४ पत्ता उव्वाहुलुग्गुप्पायणउं हरि-राउलु विणु अणिरुद्धे । णं विदाणउं कमल-वणु णहे दिणयरेण अविरुद्धे । तो सकसाउ जाउ गोविंदहो जेण विओइउ सजण-विंदहो णंदण-णंदणु वालु महारउ आउ कियंतु तासु हक्कारउ जइ-वि पवणु वइसवणु पुरंदरु वरुणु कुवेरु थेरु जमु हरि हरु मरइ तो-वि महु दुक्किय-गारउ ताम महारिसि आयउ णारउ सो पभणइ कह-कह-वि कुमारहो पट्टणु सयलु रुवंतु णिवारहो पिय-हियवउं णामय-रस-छिक्कउं सोय-विमुक्कु थक्कु तुण्हिक्कउं कहइ महारिसि सग्ग-णिसेणिहे गिरि-वेयड्डहो उत्तर-सेणिहे सो णिय-पुरि णामेण पसिद्धी वहु-धण-वहु-जण-कणय-समिद्धी ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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