Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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रिट्ठणेमिचरित
घत्ता ते सयल-वि सोहंत विसेसें णं छ-वि रिउवत्थियति(?) वेसें। णं छज्जीव-णिकाय पराइय णं छ-क्काल मिलेविणु आइय ।।
४
। [१२] दूरंतरे रहवर मुएवि तेहिं अइ-भत्तिए हरिवंसुब्भवेहिं सयलेहिं वंदिउ भव-भय-णिसुंभु केवल-जल-पूरिय-ति-जय-कुंभु विस-विसम-विसय-परुिरुद्ध-चित्तु भामंडल-किरणंतरिय-मित्तु संसार-सायरुत्तरण-जाणु दूरयरोसारिय-कुसुमवाणु पीणिय-दय-धम्म-विहय-विवत्त कालोय-जोय-पदत्ति(?)-जुत्त परिसेसिय-राइमई-सुकंत छड्डिय-सयणा विय सोहवंत पुणु धम्मक्खर णिसुणेवि सव्वु मेल्लेवि धणु जोव्वणु रूव-गवु जिणणाहहो पासे णिरंतराई परिपुच्छिज्जति भवंतराई
घत्ता इय वयणेहिं तिहुयण-कय-सेवें णेमि-जिणसरेण संखेवें। अक्खिउ मायउ वहिणि जणेरउ चिर-भव-वइयरु कंसहो केरउ॥
९
[१३] आयाणेवि णाहहो महुर वाणि थिय अग्गए सिर-संपुडिय-पाणि विण्णत्तु करहो दिक्खहे पसाउ अम्हहं कम्म-क्खउ अज्जु जाउ एउ चवेवि अचल-मण-णिम्मलेहिं पावज्ज लइय सहुं परियणेहिं सज्झाय-झाण-णियमेण जुत्त कालोय-जोयण-पहु उत्तिहुत्त(?) ४ परिकलिय-भीम-परिभण(?) विचित्त अण्णोण्ण-णेह-संवलिय-चित्त हुय वारहंग-सुय-णाण-लद्धि संपण्ण परम वीयार(?) वुद्धि एत्थंतरे चलिउ तिलोय-णाहु थिर-वाहंदोलिय-कमल-णाहु कु-विएसेहिं भूमिहिं पइसरंतु गिरि-पुरवर-गामहिं रइ करंतु ८ मंडलिय-सयहं पावज दिंतु दस-दिसए पसिद्धिए धम्म जिंतु
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