Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 84
________________ एक्कत्तर - समो संधि एत्थंतरे माहव - मायरिए णिसुणंतहुं णरहुं सुरासुरहुं [१] तिहुवण - परमेसर जिणवरिंद चरई (?) पट्टु महु तण गेहु पल्हवियउ दुद्धु सिहिण जेत्तु तो चउ - गइ - विडवि - कुढारएण वहु- कालहिं मिलिएहिं णंदणेहिं पप्फुरइ वाम - डोलउ महंतु सहं उवरि वर- हु होइ जे पढम ति जमल पयण्ण आसि यि इगम - देवें साहिएण अप्पिय सुलसहे वड्डिय कमेण णामिय- सिरए चारु- मइए । जिणु परिपुच्छिउ देवइए || ( ध्रुवकं ) घत्ता माणेवि इह-लोयहो तणउ सुहु परिहरेवि परिग्गहु पुणु लइउ Jain Education International [२] इय जिण वयणेहिं उम्माहिय-मण वियलियंसु-जल-लव-मोत्तिय - सय देवइ पभणइ अहो मम पुत्तहो यमेवं छवि आसि विओइय वसई हत्थे म परिपालिय एवंहिं कह - वि कह - वि परियाणिय किं तव चरणें होहिं पहाणा - गय-दिवस पुच्छमि मुणि- वरिंद पिक्खेवि महु वडिउ परम-णेहु किं कज्जें फुरियउ वाम - णेत्तु उप्फालिउ णेमि - भडारएण अवसें आऊरइ पर थणेहिं जो पेच्छइ तुह सुय भवणु पत्तु यि दिट्ठ- सुयहं पुणु किं ण होइ ते एय महा-गुण- रयण - रासि रावण - महेलि गराएण (?) णं इय-वाह तोयागमेण - पेक्खेवि महु तणउ समोसरणु । अम्हहं पासे तव चरणु ॥ थोर - खीर - धारा - वरिसिय-थण गरुय - हरिस - कारुण्ण-सुरग्गय सयल-पगुण-गुण-गण- संजुत्तहो णिय - णयणहिं वडुंत ण जोइय एक्कु - वि दिवसुण लालिय तालिय एत्तिय कालहो पुण्णेहिं आणिय भूतिखंड मंडिय-महि- राणा - - For Private & Personal Use Only ४ ११ ४ www.jainelibrary.org

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