Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 82
________________ सउमो संधि ७३ घत्ता णेमि-जिणिंदु एम विहरंतउ दारावइ-पुरवरु संपत्तउ। सुरवर-णिम्मिए थाणे सु-वित्थए थिउ उजिंत-गिरिंदहो मत्थए ॥ १० [१४] जिण-आगमणु सुणेवि अणुराइय वंदणहत्तिए जायव आइय अम(?)रह-णर-कुल-कोडि-पहाणा वासुएव-वलएव-पहाणा(?) णिसतु (?) समुद्दविजय-गय-वारण अचल-विजय-हिमगिरि-सिणि-सारण वसुएवाहिचंद-पिहु-पूरण थिय(?) समुद्द-अक्खोहाऊरण ४ दुंदुहि-दीवायण-मयरद्धय भोय-भाणु-अणिरुद्ध-जरद्धय संवु-सुभाणु विण्णि सुहि उट्ठिय णिसिअंकूर-विओरह वंधव विण्णि वि वारहेद्ध-सिणि-तणुरुह कुंतल-दयवर-विविविय(?)-सीहमुह तिह रोहिणि-देवइ-सिवएविउ सच्चहाम-रुप्पिणि-महएविउ रेवइ-पारि-गोरि-गंधारिउ पोमावइ-लक्खण-रइ-णारिउ तिह सुसीम-जंववइ-सवालउ उवहि-सुवण्णमाल-णामालउ सव्वइं भामरि देवि खणंतरे पइसारेवि समसरणभंतरे पारायण-पमुहेहिं सुर-सारउ णाणा-थोत्तेहिं थुणिउ भडारउ घत्ता जय परमेसर णिम्मल-सासण जाइ-जरा-मरणाइ-विणासण। जय जायव-कुल-णहयल-हिमयर जय संसार-सिंधु-सुर-गिरि-वर ॥१३ [१५] जय वावीसम-तित्थुद्धारण जय भवियायण-मोक्ख-पइसारण वंदण करेवि एवं परिउट्ठा कोट्ठए एयारहमे वइट्ठा सोहइ समवसरणु वित्थिण्णउं एयारह-गणहरेहिं रवण्णउं चउ-सय-पुव्व-धरालंकरियउं पण्णारह-सय-केवलि-भरियउ ४ तेत्तिय-अवहिणाणि विणिउत्तहं विउल-मइहिं णव-सएहिं पउत्तहं तिहिं लक्खेहिं सोहिउ वय-भासिहिं परिमंडिउ सावियहिं पगासिहिं अट्ठारह-रिसि-सहस-विहूसिउ सुहि-रामइं वरदत्तहिं (?) भूसिउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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