Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 83
________________ ७४ रिट्ठणेमिचरित वाइय-अट्ठ-सयहिं सोहंतउ एयारह-सय-वेउव्वंतउ अट्ठ-सएहिं एयारह-सहसेहिं मह-पमाणु सिक्खुएहिं असेसेहिं सावय एक्कु लक्खु दरिसावणु वर चालीस सहस अज्जिय-गणु घत्ता तहिं समवसरणे सुरेहिं पहाणेहिं णिय-मणे भाविय-धम्मक्खाणेहिं। किय-सिर-सेहरे सयं भुय-जुयलेहिं पुणु पुणु जिणु वंदिज्जइ सयलेहिं॥११ इय रिठ्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुव-कए उव्वरिए तिहुअण-सयंभु-महाकइ-समाणिए समवसरण-णाम सउमो सगो।। *** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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