Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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रिट्ठणेमिचरित
करहो रज्जु उब्भहो मह-चिंधई मंडलाई सिझंत असिद्धई
घत्ता लहु भाइ सहोयरु महुमहणु होउ सयलु भुवणाधरु पवरु । वलएव-पमुहु पेसणु करइ सयलु-वि जायव-णर-णियरु ।।
मणे उच्चंत-णेह-संजायए जेवं पउत्तउ देवइ-मायए तं दसारुहेण साणंदें
एम होउ वुच्चइ गोविंदें पडिवण्णउं रोहिणि-जाएण-वि इच्छिउ जायव-संघाएण-वि तं णिसुणेवि चवंति ते मुणिवर इय आलावण कहो-वि सुहंकर ४ जणि णरयंतु रज्जु सुणिज्जइ आयहो उवरि मोहु किह किज्जइ तुह गब्भन्भंतरे संभूया चिरु कय-कम्में दूरीहूया परिवड्विय मंदिरे वणि-पवरहो विच्छोइय सुहि-वंधव-णियरहो . रायउत्त हरिवंसुप्पण्णा विहि-वसेण मल परि(?)पवण्णा ८ कवणु कट्टु जो गइयउ पासिउ णेमि-जिणिंदें तो आहासिउ एय वज्ज-संघडण-सरीरा सुरहं वि अचल सुराचल-धीरा आएहिं केवल-णाणु लएव्वउं अविचलु सिद्ध-खेत्तु साहेव्वउं णेमिहो आलावेहिं सविसेसेहिं मुक्कु सोउ जायवेहिं असेसेहिं
पत्ता ते देवइ-तणय-वि आरुहेवि उप्परि जावं महंत-गिरिहिं। आऊरिवि सुक्क-झाणु विमलु थिय सम्मुह सासय-सिरिहिं ।
[४] एत्थंतरे पुच्छइ किय-पणाम णिय पुव्व-भवंतर सच्चहाम जिणु पभणइ भद्दिल-णयरु आसि कमला-मरीइ-सुउ गुणहं रासि होतउ दिण्णउं जणयाहिरामु मुंडस-णयरु णु उद्धरिय-णामु तें णवम-जिणिंदहो तित्थ-छेए मूलहो-वि विणट्ठए धम्म-भेए ४ गोकण्णाइहिं सुवण्ण-दाणु अणेक्कु चउत्थउ भूमि-दाणु आइहिं सु-पसिद्धिहिं जगे णियाए जड-लोएहिं राएहिं मण्णियाए
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