Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 95
________________ रिठणेमिचरिउ [२१] णामें आयंविलु वड्वमाणु वहु-दिणेहिं मरेवि दिण-सार-भूय वंदार-वहुय-सहसहं पहाणु पुणु तुहुं अरिट्ठ-पुरे धण सुणाहि सिरिमइहे गब्भे चामियर-छाय पच्छिमए काले तव-चरणु लेवि इंदत्त-महासुहु अणुहवेवि उप्पाएवि णिम्मलु परम-णाणु ४ तउ घोरु चरेप्पिणु सुह-णिहाणु सहसार-सुरिंदहो देवि हूय एगवीसहिं पल्लंकियवसाणु भुवण-त्तय-पयडु सुवण्णणाहि आएवि पउमावइ एत्थु जाय सोलहमए सग्गे समारुहेवि वावीसहिं रयणाहरहिं एवि जाएसहि पुणु णिव्वाण-ठाणु घत्ता तंणेमि-जिणिंद-वयणु सुणेवि परियाणिय-भव-भव-गइए कर मउलि-करेप्पिणु स-रहसए किय वंदण पउमावइए । [२२] जिह अट्ठ-महाएविहिं तणाई कहियइं भव-सयई चिरंतणाई तिह रोहिणि-रेवइ-देवइहिं अवरहि-मि अणेयहिं थीमइहिं तो केहि-मि तहिं सम्मत्तु गहिउ केहि-मि दंसणु चारित्तु लइउं केहि-मि मग्गियई महव्वयाइं केहि-मि पुणु पंचाणुव्वयाई केहि-मि इच्छियइं गुण-व्वयाई केहि-मि चयारि सिक्खा-वयाई जिणु थुणेवि स-जायव-सुहड-विंद गय स-रहस संकरिसण-उविंद णं विण्णि-वि विजय-तिविट्ठ भाय णं राहवचंद-सुमित्त-जाय परिओसें दारावइ पइट्ठ णिय-णिय-सहाए लीला-णिविट्ठ ८ तेत्थु-वि हरि-भायर परम-सत्त केवलु उप्पाएवि मोक्खु पत्त घत्ता जग-णाहु-वि भव्व-हियत्तणेण अट्ठ महा-गुण-मणि-उयहि। णिरुवम-धम्म-विहूसणेण भमइ सयं भूसंतु महि॥ इय रिठ्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभु-उव्वरिए तिहुवण-सयंभु-महकइ समाणिए कण्ह-महिल-भव-कहणमिणं एकुत्तर-सउमो संधि ।। *** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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