Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ ८० रिट्ठणेमिचरिउ कणयउरे रयण-संचए सुसेणु पहु होतउ णामें विस्ससेणु तहो भज्ज अणुंधरि सुमइ मंति भाविय-जिण-धम्म-छणिंद-कंति एत्तहे-वि दुहिय महि-कामधेणु वज्झाउरि-राणउ पउमसेणु चउविह-वलेण सहुँ उवरि आउ महा-संगामु रउद्दु जाउ सो भड-संदोहहो भउ जणेवि गउ विस्ससेणु णरवइ हणेवि घत्ता पडिवोहिजंति-विसावएहिं तहिं अप्पमत्त सम्मत्त सुय । साणुंधरि विससेणहो वल्लहिय जलणवेय विंतरि वि हुय॥ १२ [११] दस-वरिस-सहासेहिं तहिं चवेवि संसार-महण्णवे चिरु भमेवि पुणु जंवूदीने विदेह-मज्झे सीया-णइ-दाहिण-तडे दुसज्डो रम्मक्ख-खेत्ते सुहमालि-गामे जक्खिल-सुरसेणहे मिहुण-धामे सुय णामें जक्खाएवि जाय । ति-वेसें जक्खिणि णाई आय एक्कहिं दिणे णिम्मलु करेवि चित्तु गय जक्खं-गुह पुज्जा-णिमित्तु तहिं धम्मसेणु गुरु ताम दिछु तें सावय-धम्मु असेसु सिङ अण्णहिं दिणे मह-भत्तिए समाणु णिरवज्जु देवि तहो अण्ण-दाणु गय विमल-सेलु कीलणहो जाम पीडिय अकाल-वरिसेण ताम णासेवि पइट्ठ गिरि-गुह खणेण तहिं गसिय भीम-पंचाणणेण तुहुं हुय हरिवरिसे दु-पल्ल-आउ पुणु जोइस-गणे पलिओवमाउ पुणु पोक्खलावइ-विसय-मज्झे पुरे वीयसोए सुरेहि-वि दुसज्झे सिरिमइ-असोयरायहं स-रूव णंदणि णामें सिरिकंत हूव जिणयत्ता-गणिणिहे समीवे कण्ण तवयरणु घित्तु णिज्जिणेवि सण्ण णिम्मलु रयणावलि-वउ करेवि माहिंदे सुरंगण हय मरेवि । एयारह पल्लई तहिं गमेवि सहुं सक् सुहु भुंजेवि चवेवि पुणु जाय एत्थु सोरट्ठ-देसे गिरिणयरे सुजेट्ठा-गब्भ-वासे णंदणि सुरद्धवद्धण-णिवासु तुहुं जाय सुसीम ढुक्केवि तासु १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122