Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 88
________________ एक्कत्तर - समो संधि सम्मत्तु दुरिय- तिमिरोह - रवि लोइय- दाणेहिं उववास करेवि णंदण-वणि कडणिहिं मंदरहो घत्ता चउरासी वरिस - सहासई जिण - धम्म - रहिय चिरु कालु पुणु [8] पुणु अइरावइ-वर- विजय- पुरे विंधमइहे गब्र्भे चंदमुहिय णामेण वंधुजस कण्ण वर उवलद्ध परम उववास - वय पुणु धणयहो णिरुवम - रूव- जुय पुणु जंवदीवे दीव पवरे आवेविधु वज्जमुट्ठि - पहुहे सुयरिसण अज्जियहे पासु गइय भिंदो जाय मणिट्ठ पिय दाहिण - सेढिहिं वेड-धरे जंवमहि - गब्भे विसुद्ध - मइ घत्ता कांइंहिं- विवासरेहिं करेवि तउ विदणु तुहुं दिक्ख विलहेवि [१०] तहिं अवसरे सई सु-विणय सु-धीम वज्जरहि पवर- चउ-कम्म- डाह रिसि संसग्गुवि तहे लडु णवि वहु कालु गमेप्पिणु पुणु मरेवि हिणि णंदण - विंतरहो Jain Education International देव - भोउ भुंजेवि चविय । चउ - गइ - सायरे परिभमिय ॥ उज्जंगल - विउल - पउर-पउरे हुवंधुसेण - रायो दुहिय सिरिमइ - कंतियहे पासे णवर कण्ण-वि जिण - संणासेण मुय णामेण सह पत्तिय सिय- लिए पुंडरिकणि णयरे हुय सुमइ सुभद्दा - णव- वहुहे मुत्तावलि तउ करेवि मुइय तेरह पल्लई लंघेवि चविय पुणु जंबुद्धुर-जव - णिवहो घरे उप्पण्ण एत्थु तुहुं जंवुवइ होसहि सग्गे पहाणु सुरु । पुणु पइसेसहि मोक्ख- पुरु ॥ कर मउलिकरेवि पुच्छइ सुसीम महु जम्मंतर तिलोय - णाह इय-वयणेहिं तिहुवण- सिरि- णिवासु आहासइ णिग्गय - दिव्व-भासु सिरि-धादइ- संडे विसाले दीवे वर - पुव्व - विदेहहो मज्झे विज‍ पुव्वद्ध-मंदरद्दि समीवे वित्थिपणे मंगलावत्त-विसए For Private & Personal Use Only ७९ १० ४ १२ www.jainelibrary.org

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