Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 86
________________ ७७ एकुत्तर-सउमो संधि मिच्छत्तु पसंसेवि गयई ताई संचेवि णाणा-दुक्किय-णिहाउ कह-कह-वि कमेण पुणोवइण्णु इय मइरामिस-वस जण कियाई सो मरेवि णरए सत्तमए जाउ तिरियत्तणु मणुयत्तणु पवण्णु घत्ता तीरंतरे गंधावइ-णइहे सिहरे गंधमायण-धरहो। पव्वउ णामेण किराउ हुउ वल्लरि पिय णामें महिल तहो॥ एक्कहिं दिणे सिरिहर-धम्म-णाम दुइ चारण लक्खिय सिद्धि-काम उवसमिउ पासे तुहुँ गरुय-गत्तु उववासु लइउ पुणु मरणु पत्तु महवल-रायहो सलया-पुरिहिं जोइय-मालाधर-खेयरिहिं सय-वलिहिं अणुउ दिढ-कढिण-काउ णंदणु हरिवहणु तासु जाउ सिरिहरहो पासे होएवि स-दिक्खु एहु णाणुप्पाएवि चडिउ मोक्खु जेठूण विरोह-कियायरेण हरिवाहणु वारिउ भायरेण भगली-देसब्भंतरे विसाले उत्तुंगे अंबुआवत्त-सेले दुइ चारण लक्खिय गरुय धीर णामें सिरिधम्माणंतवीर तहो पासे लएप्पिणु तवसि-मगु ___ वहु-दिवसेहिं गउ ईसाण-सग्गु दुइ रयणायरई वसेवि तेत्थु तुहुं सच्चहाम पुणु जाय एत्थु ना घत्ता इह धम्मु लएप्पिणु तव-चरणु आरणे होएवि अमर-पहु। पडिआएवि कम्म-क्खउ करेवि पुणु परिणेसहि सिद्धि-वहु॥ ११ इत्यंतरे पुच्छिउ रुप्पिणिए जिणु अक्खइ अमरालय-विसेसु तहिं लच्छिगामु सु-महा-पहाणु तहो लच्छिमइ णामेण विप्पि एकहिं दिणे दुद्धर-तव-विउत्तु पुणु सत्तहं दिवसहं मज्झे पवर णिय-पुव्व-भवंतरु रुप्पिणिए इह वेणि(?)अत्थि वर-मगह-देसु दिउ सोमएउ चउ-वेय-णाणु रूविं तहे सम तिय णहि कहि-वि मुणि जिंदिउ णिएवि समाहिगुत्तु ओ दुद्धर-कोढिं गलिय णवर ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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