Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 79
________________ ७० रिटणेमिचरिउ ४ घण-मणि-किरण-णिवह-पूरिय-णहे तहिं तइलोक्क-णाहु विहरइ पहे कहि-मि सुरंगण-गण-पब्भारेहिं हरइ हार दारिय-थणहारेहिं कहि-मि सरहिं णव-पंकय-णयणेहिं णं पायड जलदेवय वयणेहिं वाविहिं कुसुमई कहिं-मि हरंतिहिं णं अणिमिस-णयणेहिं जोयंतिहिं कहि-मि रेणु पिंजर कुसुमोहहिं णं णव-घुसिण-पंकय-सोहहिं कहि-मि झुणिर फुल्लंधुय पयत्तेहिं णं वीणा-विणोउ दरिसंतेहिं कहि-मि सहइ णाणाविह-चित्तहिं णं जिण-चलण-कमल-गय-चित्तहिं घत्ता कत्थइ वित्थय-कप्पलया-हरे सिढिलिय-मणि-मोत्तियउ मणोहरे । णच्चण-रस-वसु परिसमवंतउ वीसमंति अच्छरउ अणंतउ॥ [८] विज्जाहर-किरण-सांवलिय सुरेहिं विमाण-णिवह णहे पेल्लिय थरहरंतु पवणुद्धय-धयवडु महमहंत-सुरकुसुम-रउक्कडु रणझणंत मणि-वासिय(?)मालिय टणटणंत-घंटा-जालोलिय किंकिणि-रव-पूरिय-भुवणोयर रयण-किरण-कवलिय-तिमिरोयर झुविर-मुत्तावलि-मयराणण सिहरे ठिय णं वण-पंचाणण णच्चमाण-चारण-परिवारिय कल-गंधव्व-गेय-झंकारिय घत्ता कहि-मि वहति विमाणइं णहयले सुरवर-गणु संचरइ महीयले। जिणवर-णाहे पइट्ठिए मग्गहो पल्लवएसु जाउ समु सग्गहो। ४ भासेवि पल्लवएसु भडारउ पुणु गच्छंतु लाड-देसंतरु कुरुजंगलु पंचालु समाइउ पुव्वएसु सयलु-वि परिचड्डेवि पुणु कलिंग देसंतरु लंघेवि गउ सोरट्ठ-विसउ सुर-सारट सूरसेण तत्थहो जि पडतरु पुणु कुसद्ध पुणु मगहे पराइड कोमल-पय-तामरिसें मंडेवि दय-धम्मोवदेस-परिसंघेवि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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