Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 77
________________ रिट्ठणेमिचरिउ घत्ता णिरुवद्दवउ सव्व-दिस-पमुहउ लोयवाल पालंति स-वाहणु। उवसमियइं चोरारि-विसग्गइं विविह-राग-देसाइ-उवसग्गइं । [३] तो तियसेहिं मेलिय-तारायणु पिहुलत्तणि णिज्जिय-गयणंगणु जंवूणय-तामरस-विहूसिउ कणिर-कणय-किंकिणि-रव-रासिउ वहुविह-मणि-दामेहिं सोहाविउ +++++++++++++ चारु-चमरेहिं विज्जिय-दिसिवहु णाणा-धय-णिवहेहिं पूरिय-णहु ४ चउ-दिसु सुर-कुसुमेहिं मंडिउ परिमल-मिलिय-भसल-कुल-वड्डिउ पासेहिं दिव्वाहरण-पसाहिउ एउ (?) अमर-तरु-पल्लव-राहिउ लंविर-मुद्दि (?)-पुंज-रय-पिंजरु किउ मंडउ दुइ-जोयण-वित्थरु ८ उप्परि सोह जिणिंदहो किज्जइ दिव्वंवरेहि वियाणु रइज्जइ घत्ता तहिं वियाण-तले जिणु संचल्लइ पय-तामरसु जावं उच्चल्लइ। अग्गए हिंडेवि णामवयग्गलु (?) उट्ठइ णिम्मलु वियसिउ कमल।। चलिउ णाहु सुरवर-पुज्जारुहु पाएहिं ण छिवंतु सरोरुहु . भाव-सुणिम्मल-वियसिय-कमलउ कणयंदुरुह-पवल-रय-सवलउ अकलिय-गंभीर-तणु-थाहउ तरल-हार-हंसावलि-राहउ मरगय-सय-भूसण-सेवालउ ++++++++++++++ कर-रत्तुप्पल-पाविय-छाहउ घुसिणारुण-णयण-चक्काहउ गुरु-णियंव-परिणाह-विसालउ । मणि-वलयामल-वाह-मुणालउ वलिरालय-भिंगावलि-मालउ पसरिय-कंकण-विहय-वमालउ दीहरच्छि-मच्छिहि अहिरामउ पसरिय-धम्म-चक्क-रविरामउ घत्ता वर-सरसीउ व सुप्पय-वंतिउ विग्घ-सहासई विणिवारंतिउ। मंदरमउ(?) जिणवर-पय-सेविउ पुरउ णिविठ्ठउ सासण-देविउ॥ ८ १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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