Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 51
________________ रिट्ठणेमिचरिउ जइ केण-वि रइयाहार-रासि तो मेरु महा-गिरि होंतु आसि परिपीयइं सलिलई जेत्तियाई रयणायरु दुक्करु तेत्तियाई केत्तियहं करेसमि परम-णेहु को कासु सव्वु वामोहु एहु कहो तणिय माय कहो तणउ वप्पु +++++++++++++ घत्ता उज्जेतहो सिहरे समारुहेवि घोरु चरेवउ तव-चरणु । उप्पज्जइ केवलु णाणु जिहिं छिज्जइ जाइ जरा मरणु॥ मलाइ सिवएवि पयंपइ धुणेवि देहु तुहुं वालउ अंगई कोमलाई णं सहति महा-मल-पडल-धरणु इंदियई होति अइ-दूसहाई दुप्पालई वयई कसाय घोर जीवहो जीवत्तणु भूय-गामे ण मरंतु को-वि अणुहवइ सुक्खु अण्णाणु ण जाणइ अंतराले तव-चरणहो अवसरु कवणु एहु अज-वि कुवलय-दल-सामलाई सज्झाय-झाण-तव-णियम-करणु विसमइ वावीस परीसहाई .. चोरंति चरित्तइं विसय-चोर दीसइ अण्णेहि-मि ण कहि-मि थामे णउ जीवमाणु परिसरइ मोक्खु सिद्धतणु कउ एत्तडए काले ८ पत्ता तो वुच्चइ णेमि-भडारएण जइ अण्णाणु जीजु मरइ । तो किं अम्हारिसु को-वि णरु दस जम्मतरु संभरइ ।। जीवहो जीवत्तणु सयल काल जिह अग्गि अणग्गि व धुंधणेण वज्झइ परमाणु पुरोगमेहिं परिणाम-कम्म-देहिदिएहिं गब्भावयार-वालत्तणेहिं अवरेहि-मि अवत्थहिं वहुविहेहिं जीविउ जीवइ जीविसइ जेण संसारिउ वहइ सरीर-माल तिह जीउ अंजीउ व वंधणेग मिच्छत्त-कसायासंजएहिं अवरेहिं असारेहिं णिदिएहिं वालय-जुवाण-वुढत्तणेहि अहिणव-मुइंग-कक्कर-णिहेहिं जीवहो विणासु ण कयावि तेण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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