Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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रिट्ठणेमिचरिउ
तिहुयण-सिरि जसु आण-पडिच्छिय तहो पुच्छिज्जइ काइं सुहच्छिय केवल-णाण-णयणु जिणु जेत्तहिं अट्ठ-वि पाडिहेर थिय तेत्तहिं तिण्णि-वि भुवणई जसु आयत्तई अवसें तिण्णि होति तहो छत्तइं जासु पासे सोउ जे ण गच्छइ अवसें तहो असोउ उप्पजइ जसु कल्लाण-काले जगु डोल्लइ सो सामण्ण भास किं वोल्लइ जसु तइलोक्क-रज्जु णिरवजउ अवसें तहो सुर-दुंदुहि वज्जउ जासु पहुत्तणु सलहिउ अमरेहिं अवसे सो विजिज्जइ चमरेहिं जासु कसाय-सेण्ण रणे विहडइ अवसें कुसुम-वासु तहो णिवडइ
___घत्ता छत्तइं रत्तासोय-तरु सुर-दुंदुहि चामर-वासणु । जसु एवड्डु पहुत्तणउं तहो किं ण होउ सीहासणु ॥
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गय हरिणक-देव हक्कारा समवसरणु णिम्मविउ भडारा तिहुवण-जण-मण-णयणाणंदहो __ जहिं उप्पण्णु णाणु जिणयंदहो तहिं उप्पाइउ पीढु ति-मेहलु वेत्तागारु सुवण्ण-समुज्जलु तहो पीढहो मेहल पहिलारी अद्ध-दंड-उच्चत्तण-धारी अद्ध-इंदधणु-सयई पइट्ठी आयहिं एहिं एहिं संकिट्ठी चउ-दंडुण्णय मज्झिम मेहल पोमराय-कर-णियर-समुज्जल उवरिम मेहल धणुव-विहाणि पसरणु-उच्चत्तण-परिमाणिं सव्व-महामणि-किरण-विहिण्णी उप्परि धणु-सहास वित्थिण्णी
घत्ता रइय ति-मेहल-मंडलिय सोवाण-पंति चउ-पासेहिं । सुक्ख-णिसेणि परिट्ठविय णं सिद्धहिं सिद्धि-णिवासेहिं।
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