Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 73
________________ ६४ घत्ता तं हरिणंक - वयणु सुवि दीहर - दिस - वित्थिष्णु णहु वाहण - जाण - विमाण - सहासेहिं अमरवरगण णवर मेहलियहिं णं उव्वेल्लइ धय-संघाएहिं णं रसमसइ रसंतेहिं तूरेहिं संख-ताल-पडु-पडह- णिणद्देहिं वहिरिउ अंवरु किं पिण सुव्वइ सो सो पडिव पल्लट्टउ तेण पुरंदरेणभय-दाणें [१४] भावण- पमुह- दसट्ठट्ठारस कप्पामर दस - भेय समासिय अहि पायालहो णर पुरहुं तिहुयणु णीसुण्णउं करेवि घत्ता Jain Education International सत्ताणीयाणीय णिओइय लोयपाल किव्विसय पइण्णय हय-रह-गय-पाइक्काणीयइं आयइं आयइं सत्ताणीयइं जोइस पंच तियाहिय विंतर पुव्व - दिसए पइसरइ पुरंदरु [१५] घत्ता सुरवइ - सिरि जिणवर - सिरिहे तिहुणु णवल्लह-वल्लहहो सग्गहो आइय देव - णिकाय । जिण - वंदण - भत्तिए आय ।। सहसत्ति पुरंदरु आइउ । तो वि सुर- गणु कहि-मिण माइयउ ॥ ९ लंवइ गयणु णाइं चउ-पासेहिं णं विप्र झत्ति विज्जुलियहिं हम सुधेहिं वाएहिं णं जिगजिगइ रयण-पडिसूरेहिं णंद-वद्ध-जिण-जय-जय - सद्देहिं भणइ सक्कु जो रूउ विउव्वइ इयरु सव्वु वंदणहं पयट्टउ थिय सुरवर दस - धणुव - प्रमाणें तेवं तीस पराइय सरहस वासव तायत्तीस समासिय परिस- अंगरक्ख अहिआइय दस कप्पामर ओए समुण्णय वसुहच्छर-गंधव्वाणीयई गंध-धूव-वमालालीवइ भावण दस- पयार णय समवसरण पेक्खंतु मणोहरु रिट्ठणेमिचरिउ जयजयकार करंतु पुण थाइ । महविए वि ए कामिणि णाई || For Private & Personal Use Only - सिरय-कर ४ ९ ८ www.jainelibrary.org

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