Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 74
________________ rasasमो संधि [१६] दिट्ठ पुरंदरेण तं तेहउ कहि-म मोहर गोउर - वारेहिं कहि मिति - मेहल - माणव - थंभेहिं खाहिण - विणिम्मिउ जेहउ धूलि - सुवण्ण- फलिह-पायारेहिं कहि-मि सुरंगण - णट्टारंभे हिं कहि-मि सलिल - खाइयहिं विचित्तेहिं कहि-मि महालय-वणेहिं विचित्तेहिं ४ कहि-मि कुसुम-कुवलय- सयवत्तेहिं कहि-मि चेइय-दुमेहिं अणेएहिं णव णव थूणेहिं णव - णव- णिहिएहिं उवयरणेहिं सुर-कर-परिगीढेहिं - कहि-मि महद्धय- चामर-छत्तेहिं कहि-मि कप्परुक्खेहिं दस भेएहिं कहि-मि सुमंगल - दव्वेहिं विविहेहिं सिरिमंडव - गंध उडि-पीढेहिं घत्ता फलिह-साल-वलयावरिउ जिणु दिट्ठउ चारुद्देसहो । पुण्णिम-इंदु परिट्ठियउ अब्भंतरेण णं परिवेसहो । [१७] तोणिय - सिर- किय-कर- अरविंदे जय जय भव-भव-गय-मयणय-पय जय जय पभव- विगम-धुय-मय-गय थुइ आढविय जिणिंदहो इंदे -- जय जय तिहुयण - सिहरर-णयर-गय जय जय भूरि-भुवण - भव- रुय हर जय जय गुण - णिहि-रयण - महोवहि जय जय समवसरण - सिरि-धारा तुहुं गई तुहुं मइ तुहुं महु सरणउं जय जय विसहर - विसम - विसय - खय जय जय सयल - विमल - केवल - धर ४ जय जय परम पुरिस पुरिसावहि तुहुं माया-वि पिया - वि भडारा जय जण होंतु तुहुं अब्भुधरणउं घत्ता वाहि दुक्खु दालिद्दु तहो तिहुयण-सामिउ ति - जग- गुरु [१८] Jain Education International - विकहिउ ताम गोविंदहो सोलह - कारण - भाविय-भावें गिरि - उज्जेत - सिहरे सुमणोहरे सो मुसो चिंतावण्णउ | जिणु जणहो जासु अपसण्णउ ॥ पेक्खु पहुत्तणु मि-जिणंदहो घोर - वीर - तवचरण - पहावें छप्पण्णहं दिवसहं अब्भंतरे ८ For Private & Personal Use Only ६५ www.jainelibrary.org

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