Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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रिट्ठणेमिचरिउ अंतरे अंतरे ताहं पइट्ठा सोवण्ण-भत्तिउ वारह कोट्ठा ताणभंतरे भामरि-सारइं भित्तिए भित्तिए अण्णिय-दारइं ४ पंगणु कोसु कोसु रवणुज्जलु सायरेण णं दाविउ णिय-तलु वाहिरे जोयणट्ठ-वित्थारें भमेवि परिट्ठिय वलयायारें चउ-दिसु वण-वणसइ-आवरियउ णं सोहम्म-खंडु अवयरियउ चउ-वि दिसउ अच्चंत-अउव्वउ उत्तर-दाहिण-पच्छिम-पुव्वउ
घत्ता णव थूहई णव सयइं अंतरे अंतरे सुर-हम्मई। पुंजीहोवि परिट्ठियइं णं णेमिहे सुक्किय-कम्मई ।।
[१०] पढम-वेइ वीय-पायारहं कणय-सरीरहं रुप्पय-वारहं जोइस-देव परिट्ठिय रक्खणु दीहिय कोसु कोसु पिहुलत्तणु धूव-महाघड-संघड-सारइं पासेहिं पासेहिं अण्णिय-दारइं सुर-णच्चण-सालउ अण्णेत्तहिं दस दस कप्प-रुक्ख अण्णेत्तहिं ४ मजण-तूर-विहूसण-गारा भायण-भोयण-वहण-विसारा जोइसंग-वत्थंग-महत्तरे दीव-अंग-मल्लंग-मणोहरे चउ-दिसु दुत्थ रुक्ख चउ-पासेहिं ते-वि पसोहिय साह-सहासेहिं मूले ति-मेहलग्गे जिण-पडिमउ सव्व-सुवण्ण-कोस-मणि-जडिमउ ८
घत्ता वीयए जोयणे एह विहि तहिं कासु-वि चित्तु चमक्कइ। दस-सयाई जसु आणणहं धरणिंदु-वि कहेवि ण सक्कइ ।।
[११] तइयए मंडले जोयण-वित्थरे विहि-विहेहि-मि अंतरे अंतरे दस दस कप्प-रुक्ख जहिं विजए दस दस तेम महद्धय तिज्जए सव्व-मेहलउ जिण-पडिमंकिय चउरस चित्तागारोवरि थिय पंचवीस धणु मप्पिय मप्पें घड एक्केकउ थिउ अवियप्पें
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