Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 70
________________ ८ णवइवइमो संधि [७] उवरिम-मेहलियहे चउ-पासेहिं फलिह-साल-वलयावरियासेहिं चउ गोउरई चयारि दुवारइं पउमराय-मणि-मंडण-सारई दुइ दुइ धणु-सयाई मेल्लेप्पिणु सम-पएस-पमाणु लएप्पिणु किय गंधउडि जिणिंदहो केरी छण्णव-धणु-सयाई उच्चेरी चउराणणिय ति-सालिय छज्जइ मेरु-ति-मेहल चूरिय णज्जइ तहिं चउराणणु थिउ परमेसरु पलियंकासणु कम्म-खयंकरु तहिं असोउ तहिं चामर-वासणु तहिं भामंडलु तहिं सीहासणु छत्तई तहिं तिण्णि-वि विचित्तइं तहिं सुरतरु-कुसुमई विक्खित्तई घत्ता धय-मालाकुल-करयलेण मोत्तिय-माणिक्काभरणे। अमर-विमाणहं पह हरेवि णं णच्चिउ जिणवर-भवणे। [८] पुण्ण-पवित्तई मंगल-दव्वइं णिव्विय अच्चण-जोग्गइं सव्वई अट्ठत्तर-सउ कंचण-पत्तहं सव्व-रयण-परिपूरिय-गत्तहं अट्ठत्तर-सउ सालंकारहं कलस सट्ठि संघाड- भिंगारहं अट्ठत्तर-सउ चामर-छत्तहं धय-दप्पणइं पंच सुरदंतहं मज्झिम मेहल पूरिय सव्वहं अट्ठ महठ्ठय मंगल-दव्वहं हिट्ठिम मेहल मंडिय जक्खेहिं धम्म-रहंग-सिरेहिं चउ-संखेहिं सिरि-मंडउ जोयण-वित्थारें फलिह-सिलामएण पायारें रवि-वण्णेहिं सोवण्णेहिं खंतेहिं मणिमय-हीर-गहण-तुल-तुम्हेहिं घत्ता धणुस-सहास-दुइ-उच्चिमउं धणु-अठ्ठ-सहस-वित्थिण्णउं। सुरहं धरंत-धरंताहं णं सग्गु जे सई अवइण्णउं । [९] चउहिं महा-दिसेहिं चउ-वारइं पउमराय-मणि-गोउर-भारई सय-सय-कंचण-तोरण-राहई कप्पामर-परिहार-सणाहइं ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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