Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 61
________________ रिट्ठणेमिचरिउ १२ सूरकंत-वण-सर-पज्जालिउ चंदकंत-णिब्भर-पक्खालिउ सव्व-महामणि-किरण-समुज्जलु सिहरालिंगिय-दिणमणि-मंडलु गय-मयणइं उग्घाउ कयंदरु णं संचारिउ वीयउ मंदरु घत्ता तं पेक्खेवि णेमिहे णिक्खवणु चउ-देव-णिकाय-समागमणु। हउं अरुहु असेसहं अच्चणहं उज्जंतु लगु णं णच्चणहं।। __ १५ तहो उज्जतहो पच्छिम-पासें लइय दिक्ख सहुं राय-सहासें पंच-मुट्ठि किउ लोउ कुमारें चिहुर पडिच्छिय सुर-णेयारें घत्तिय खीर-समुद्दब्भंतरे सावण-छठिहे जम्मण-वासरे सिय-णिक्खवण-सेउ विरइउ हरि(?)सग्गहो गय णिव्वाण खणंतरे णेमि-णियत्थु वत्थु जहिं घत्तिउ तहिं वत्थावउ तित्थु पवत्तिउ सव्वाहरणइं मुक्कइं जेत्तहिं जाय सवण्ण-वण्ण महि तेत्तहिं केसुप्पाडु णिराहरणंगउ अच्चेलत्तु विवज्जिय-संगउ गउ सव्वु किउ सिद्धिहे कारणे वर करि-दंत-भंगु गिरि-दारणे अहवइ एण काई रस-गहिलए तिहुयणे को ण वसीकिउ महिलए घत्ता सहुं सीस-सहासें जग-पवर आरूढु महा-गिरिवर-सिहरु । जसु चित्तहो किउ ढुक्कडउ खेयउ तासु किर केत्तडउ १० तहिं आरुहेवि जग-त्तय-सारउ णाण-सिलहिं थिउ णेमि-भडारउ करेवि ति-रत्तु णियत्तु पडीवउ तिहुवण-भवणुजोय-पईवउ पइसारुच्छउ किउ गोविंदें दरिसिउ चरिया-मग्गु जिणिंदें घरे वरयत्तहो थक्कु विसेसें रिसहु व पाराविउ सेयंसें दाण-फलेण तेण संजायई पंचच्छरियई तहो घरे जायई दुंदुहि गंध-वाउ वसुहारउ पुप्फ-विट्टि सुर-साहुक्कारउ अण्णहिं दिणे तव-लच्छि-सणाहें णाण-सिलहिं थिएण जग-णाहें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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