Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 64
________________ ४ अट्ठाणवइमो संधि जिवं जिवं सिविय-जाइ आयासें तिवं तिवं डज्झइ विरह-हुवासें चंदण-लेउ णिरारिउ लावइ स-जल-वि जलइ जलद्द ण भावइ चमरुक्खेव-महावड-वाएहिं अंगु ण उल्हाविजइ आएहिं धुक्कुडुइय सरीरहो लग्गी णवमी कामावत्थ वलग्गी क-वि काए-वि वुच्चइ धव-गारी मंगोसामिणि मरउ महारी मायडी जाहि णियत्ति भडारउ भणु णिरत्थु तव-चरणु तुहारउ धत्ता परमेसरि अच्छइ सोय-भय छुडु दसमी कामावत्थ-गय। जइ मुवइ पमाएं राइमइ तो णाह लहेसहि कवण गइ। [१२] तहिं अवसरे जिणु जावं पवट्टइ आसण-कंपु सुरिंदहो वट्टइ भावण-भवणंतरेहिं आपूरिय संख-णिणाय जाय अइ-धूरिय वितर-भवणंतरेहिं अणाहय पडह पगज्जिय जेम वलाहय जोइस-आवासेहिं अणिट्ठिय सीह-णाय सयमेव समुट्ठिय जय-घंटउ कप्पामर-ठाणेहिं टणटणंति सयमेव विमाणेहिं करेवि सव्व सामग्गी महंतिए चलिउ पुरंदरु वंदणहत्तिए चंपाचंपि जाय सुर-जाणहं रहु खंचेहि देहि महु जाणहं करि ओसारहि वोलउ केसरि धरि तुरंगुमा कुज्झउ वेसरि घत्ता सुर-मिहुणई एम चवंताई णहे पेल्लावेल्लि करंताई। णेमिहे णिक्खवणे पभूआई उज्जतहो दुक्कीहोताई। [१३] दिङ महागिरि दूरुद्देसहो जीव-लोउ णं जगहो असेसहो कणय-महीहर-सिहरुच्चेरउ णं सेहरउ धरित्तिहे केरउ साहारणु थावरु आयाउ-वि सुहम पयडि तहे-वि उज्जोउ-वि तेरह णामई तिह णिट्ठवियई णउ णायइं केत्तहिं पट्टवियई सोलह कम्मई हणेवि खणंतरे तो अंतर-मुहुत्तमेत्तंतरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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