Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 63
________________ रिठ्ठणेमिचरिउ [९] अण्णेत्तहे सिवएवि स-वेयण अण्णेतहे देवइ णिच्चेयण अण्णेत्तहे रोहिणि रोवाविय अण्णेत्तहे रुप्पिणि मुच्छाविय अण्णेत्तहे रेवइ विद्दाणी अण्णेत्तहे जंवुमइ मिलाणी अण्णेत्तहे लक्खण उम्माहिय अण्णेत्तहे गंधारि स-वाहिय सच्चहाम अण्णेत्तहे कंदइ गउरिहे अंसु-णिवहु णीसंदइ अण्णेत्तहे विलवइ पोमावइ अण्णेत्तहे सुसीम धाहावइ अण्णेत्तहें जसोय अवचित्ती सोय-जलण-जालोलि-पलित्ती अण्णेत्तहे अइसोयाउण्णइं अंतेउरई असेसई रुण्णइं घत्ता पट्टणेण असेसें मुक्क रडि हा हय विहि पई किं कियउ भडि। परिपुण्ण-मणोरहु काई तउ जेणेत्थहो णेमि-कुमार णिउ॥ परिहरियइं घरिणिहिं घर-कम्मई हट्ट-टिंट-चच्चरइं अरम्मई राउल-देउलाई णीसुण्णइं घरई सिवा-सुय-सोयाउण्णइं सलिलु ण वुब्भइ कहि-मि ण रज्झइ तुरय-चलत्थहिं खाणु ण वज्झइ मत्त-गइंदहुं कवलु ण दिज्जइ णायरिया-यणु खणे खणे झिज्जइ ४ क-वि वोल्लइ सहि-कण्णोसारें किह जिज्जइ विणु णेमि-कुमारे क-वि काहे-वि अक्खइ सयवारउ मह पुग्गलेण विणिम्मिउ भारउ क-वि वोल्लइ मयरद्धय-डाहें हउं दूरहो वि ण जोइय णाहें क-वि काहे-वि दक्खवइ दिसावरु ओहु गउ ओहु गउ ओहु गउ जिणवरु घत्ता उट्ठइ पक्खलइ परिब्भमइ साहारु ण वंधइ राइमइ । जिण-मुह-दंसणु अ-लहतियए धाहाविउ विरह-पलित्तियए॥ जिह-जिह दूरीहोइ भडारउ | जिह जिह तूरहं सक्षु सुणिज्जइ तिह तिह मुच्छउ इंति अपारउ तिह तिह णाई तिसूलें भिज्जइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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