Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 62
________________ अट्ठावइमो संधि पलियंकासणेण पुव्वासें अट्ट-रउद्दई वे परिचत्तइं घत्ता एक्कग्ग-मणेण काय - वलेण तं तेहउं झाइउ झेउ तहिं [७] तो अह-कम-वत्तण- आयामें तवणंताणुवंधि वलु धाइउ पढमु कसाय - चउक्कई लग्गइं दंसण - मोहणीय - संवंधिउ सो अंतर- मुहत्तब्धंतरे पगइ सत्त विणासहो ढोएवि णो- पमत्त - अपमत्त - पमेयइं खवग-सेढि - पउग्गागारउ मंद-मंदणीसासुसासें धम्म-सुक्क - झाणइं आढत्तई घत्ता गुण-थाणु अपुव्व-करणु चडिउ अंतर- मुहुत्त - काले तउ +++ [4] - तहिं णवमिहे महा गुण - थत्तिहे हयई दंसणावरण- पहाणई अवर-वि थीण-गिद्धि अवमाणिय गइ गइ - पुव्वि णरय-तिज्जंचइं ++++++++++++++++ +++++धावइ Jain Education International गिव्वाण - महागिरि - णिच्चलेण । संवरिउ कम्मु णिज्जरिउ जहिं || घत्ता उज्जेति पयट्टे जिणवरेण तं दुक्क सण त्त-वि आपुव्वा - णिवित्ति-परिणामें जेण सव्वु जगु उप्प लाइउ अवरु ति-वग्गु परिट्ठिउ अग्गए अग्गिम-खंध- अणग्गिम-खंधिउ विरयण-सुद्धि करेवि जिउ संगरे खाइय सम्माइट्ठिहिं होएवि रय - तिरिय सुराउ- णिट्ठवियई अप्पमत्तु होएवि भडारउ तहिं एक्कु - वि भडु ण समावडिउ । अणिवित्ति-महा-गुण-थाणु गउ ॥ संवरग्ग - भावें अणिवित्तिहे दुइ णिद्दा वे पयला-ठाणइं तिणि पयड पढमउ संदाणिय एक्खाई जाई चउ - कम्मई +++++++++++++++++ मोह दिण्णु कुमारें णावइ उव्वालु किउ पुरयणेण । अहिमण्णु समत्तउ जेत्हे - वि ॥ For Private & Personal Use Only ५३ ८ १० ४ ८ ४ ७ www.jainelibrary.org

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