Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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रिट्ठणेमिचरिउ
८
मज्झिम अट्ठ कसाय वियारिय सीहें जिह गइंद ओसारिय तो अंतर-मुहुत्त-परिणामें अंत-करणु करेवि तुरमाणे किय परिवाडि पड्डिय-तेयह खवग-णउंसय-इत्थी-वेयहं पुणु छण्णोकसाय-वलु घाइउ पुरिसु व पुरिस-वेउ विणिवाइउ
घत्ता तो अवगय-वेएं होतएण कम्म-करण-किय-पत्तएण। कम्माणुभाउ ओहट्टियउ णिम्महियउ सग दह किट्टियउ॥
४
अणुहवमाणे तिण्णि-वि किट्टिउ संजलणारि-भड-त्तउ पिट्टिउ अवरउ तिण्णि जाउ उव्वरियउ लोहु ति-भाय णाई उवसरियउ तहिं वेंवत्तें गमिय पहिल्ली पयणु करेवि किट्टि मज्झिल्ली सुहुम-कसाय-थाणे आवासिउ चरम-समए संजलणु विणासिउ खीण-कसाय-थाणे पडिलग्गउ णिद्द पयल दुइ चरमें भग्गउ चउ-दंसण-आचरणई एक्कई णामावरणइं पंच-वि णेक्का अंतराय-कम्मई मित्त-त्तइं एक्क-वार चउदह-वि समत्तई एवं तिसट्ठि कम्मइं घायंतहो वीयउ सुक्क-झाणु झायंतहो दिक्खा-कालहो ववगय-वाहहो दिण-छप्पण्णाणंतरे णाहहो मास-कुमर-पडिव-चंदिण-दिणे तय-कम्मइं णिहणेवि एक्कहिं खणे
घत्ता घण-संघणणहो सुह-सारहो केवलु उप्पण्णु भडारहो। उज्जोउ जाउ णाणुग्गमणे णं दिण्णु पईवउ जग-भवणे॥
८
जम्महो लग्गेवि णिस्सेयत्तणु मुह-संठाणु-वि संघणणत्तणु सउ लक्खण अमिय-धीरत्तणु इय दस अइसय जिणहो सहावें गाउय-सयहं चउहुं अब्भंतरे
विमलिम-खीर-गउर-रुहिरत्तणु सुंदर-भाउ परम-सुरहित्तणु पिय-हिय-पुव्व-वयणु वायत्तणु दस पुणु घाइ-चउक्काभावें। सुट्टु सुहिखिम-गइ वहु-अंतरे
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