Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 58
________________ सत्तावइमो संधि घत्ता हिणि सुगंद सुरसणु सुउ सिरिमइ सिरिचंदु णराहिवइ [२५] सुपट्टे रज्जु करंतएण एक्क- दिदिणे जसोहरासु तो फलेण तेण किय-तियस तुट्ठि हय दुंदुहि साहुक्कारु जाउ सुरतरु-कुसुमालि सुरहि मुक्क वइराय - भाउ उप्पण्णु तासु केवल सुकेउपाय - मूले मल - पुव्व - सरीरहो पीडणेहिं घत्ता भावेप्पिणु सोलह कारणाई उप्पण्णु माए सो एत्थु हउं तिण्णि-वि थियई समुण्णयई । उ करेवि सग्गहो गयई ॥ Jain Education International करिवर- पुरु परिपालंतएण आहार- दाणु सु-तवोहरासु आयासहो पडिय सुवण्ण-वुट्ठि समणोहरु दाहिणु आउ वाउ बहु-दिवसेहिं मंदिरे पडिय उक्क णिय-रज्जु समप्पिउ णंदणासु पव्वज्ज लइय णिपयाणुकुले तव चरणेहिं सीह - णिक्कीडणेहिं मरेवि जयंते णिवद्ध-रइ । णेमि सयंभुवणाहिवइ ॥ इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव - कए सत्ताणवइमो संधि समत्तो ॥ *** For Private & Personal Use Only ४९ ४ ८ www.jainelibrary.org

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