Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 56
________________ सत्ताणवइमो संधि वहु-दिवसेहिं सिविणा पंच दिट्ट अहिसेउ महा-रिसि-देवयाए थोएहिं दिवसेहि उप्पण्णु पुत्तु अपराजिउ णामेण णाय-णामु परिणिज्जइ पियमए पोढ-भावे परमेट्ठि पराइउ स-रिसि-विंदु हरि करि रविंदु जंपाण इट्ठ किउ कंचण-कलसु दुवारे ताए लक्खण-विण्णाण-कलाए जुत्तु सोहग्गे णं पच्चक्खु कामु अण्णहिं दिणे दूरोसरिय-पावें णामेण विमलवाहणु जिणिंदु घत्ता तहो पाय-मूले पहु पव्वइउ रज्जु देवि अपरज्जियहो । णिय-पुत्तहं पंच सयहं सहिउ गउ देसहो भय-वज्जियहो। [२१] उत्तमे गंधमायणे गिरिंदे अइकंते विलमवाहणे जिणिंदे अण्णु-वि उवसंतए अरुहयासे अबराइउ उट्ठिउ अट्ठोववासे उव्वाहुलु धाहा-वाह-वयणु अणवरय-खणंसु-जलोल्ल-णयणु आहारु ण गेण्हइ जिणे अइढे उप्पण्ण चिंत ता सुर-वरिढे ४ वासवेण विणिम्मिउ समवसरणु स-विमाणु स-तोरणु भोय-करणु गिरि-गंधमायणुत्तुंग-सिंगे कल-कोइल-कलयले-मिलिय-भिंगे जिण-विमलवाहणहो पडिम लेवि किउ सहसकूडु णिय-णयरु लेवि घत्ता तो अच्छइ रज्जु करंतु तहिं लहेवि महा-मंडलिय-सिय । तीसमए दिवसे तहो धुउ मरणु जं जाणहो तं करहो किय ।। [२२] तो अमिय-महागइ-अमियतेय दिक्खंकिय गय मण-पवण-वेय अपरजिउ रज्जु करंतु दिङ तिहिं जेम सयंपह-जिणेण सिङ अंतेउरु अट्ठ सहास-मेत्तु हल-कोडिहिं पाएं वहइ खेत्तु पाउण-कोडि घरे घेणुयाहं सेवंति अट्ठ सहसई णिवाहं कोडिउ चउरद्ध तुरंगमाहं । लक्खेक्कवीस तंवेरमाहं सावोग्ग-महागय जेत्तियाहं सोवण्ण-महारह तेत्तियाहं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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