Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 55
________________ ४६ रिट्ठणेमिचरिउ [१८] वेयड्ढ-महीहरु तहिं पगासु तहो उत्तर-सेणिहे रिद्धि-पत्तु गयणाय-णराहिउ चंदवम्मु गयणाइ-देवि सुंदरि-विराम उप्पण्ण वे-वि णंदण अजेय एक्कहिं दिणे हक्कारेवि जणेरु तो णिएवि महीहरु परम-रम्मु पियसुंदरि होती एत्थु आसि विजाहर-लोयहो तहिं णिवासु गयणाय-णयरु वल्लह-पयत्तु जसु हियए ण फिट्टइ परम-धम्मु लायण्ण-रूव-सोहग्ग-थाम णामेण अमियगइ-अमियतेय गय वंदणहत्तिए णवर मेरु संभरिय कुमारेहिं पुव्व-जम्मु सोहग्ग-रूव-गुण-सील-रासि ८. घत्ता विज्जाहर-चक्कहं सयलह-मि ताई सयंवरु आढविउ। सहुं भाइहिं भायरु अप्पणउ सव्वाहरणई छंडियउ।। ४ हा चिंतागइ गुण-रयण-रासि कहिं अम्हइं मिल्लेवि गयउ आसि कहिं सग्गहो होतउ चविउ एत्थु दीसिहसि सहोयरु अज्जु केत्थु पई विणु अम्हहं कवणु गव्वु णिय-वइयरु जणयहो कहिउ सव्वु कुढे लग्ग सहोयर भायरासु गय पासु सयंपभ-जिणवरासु पणवेप्पिणु पुच्छिउ तेहिं एवं चिंतागइ कहिं उप्पण्णु देव परमेसरु पभणइ तेत्थु काले इह जंवुदीवब्भंतराले मेरुहे पच्छिमेण दिसावरेण सीओय-महाणइ-उत्तरेण घत्ता मणहरे सुगंधि-गंधिल-विसए सीहणयरु णामेण पुरु । तहिं अरुहयासु विसयाहिवइ सग्गहो णं अवइण्णु सुरु॥ [२०] जिणयत्त पाणवल्लहिय तासु रइ कामहो सइ व पुरंदरासु अण्णहिं दिणे देवि सुआणुराय गय तेत्थु जेत्थु जिण-पुज जाय सासण-देविहे णिवद्ध दामु महु पुत्तु होउ जगे णाय-णामु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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