Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 49
________________ ४० [4] देवत्तणे हि - महंतु दुक्खु जं दीस सक्कहो तणिय रिद्धि जं फलु विलसिज्जइ अच्चइण्णु भग्ग-क्खए जं णिय-था-भं सोहग्ग- रूव - संपय-पवण्ण जं छिवणु ण लब्भइ जम्मवारु अण्णण्ण-अण्ण-सुरर- भायणेहिं सय-वार- दिण्ण-परियत्तणेहिं घत्ता सव्वहं मणुयत्तणु वड्डिमउं जेण विढप्पइ मोक्ख- सिरि । णिव्विण्णउ दुक्ख-परंपरहिं तेण जामि उज्जेत - गिरि । [६] णव मास वसिउ तउ तणए देहे हरि - हलहर भायर वे - वि दिट्ठ मई खपि खमंतु असेस- बंधु आउच्छिय जणणि जिणेण जं जे मुच्छा-विहलंघल सिढिल-गत्त पव्वालिय चंदण-कद्दमेण विज्जिय चामीयर - चामरेहिं कह-कह व समुट्ठिय लद्ध चाय - घत्ता ताई आपइं मई हए किलेसहो भायणए [७] तुहु सुंदर सुंदर वालु वालु अज्ज - वित्तंगु ण रज्जु भुत्तु Jain Education International उप्पज्जइ जं जिउ होइ रिक्खु किज्जइ पडिहारिहिं पडिणिसिद्धि जं को -विण अच्छइ अणवइण्णु जं लग्गइ सिरे पर-पाय- पंसु जं सुरह - मिसुर वुज्झंति अण्ण को विसवि सक्क तं णिरारु माणसिय- दुक्ख - उप्पायणेहिं किं माए तेहिं देवत्तणेहिं वीमि समुह विजय - गेहे वोल्लाविय सण विट्ठि इट्ठ ओड्डेव संजम - भरहो खंधु सिवएवि महीयले पडिय तं जे कह-कह-व ण मरणावत्थ पत्त कप्पूर - पउर-परिमल - खमेण उक्खेवेहिं पडेहिं पडावरेहिं स- कलत्त दसारह तहिं जि आय माय वुत्तु रुवंतियए । पावए काई जियंतियए ।। -वि पावज्जहे कवणु कालु ज - वि तूले ण पल्लंके सुत्तु अज्ज-1 अज्ज रिट्टणेमिचरिउ For Private & Personal Use Only ४ ४ ८ www.jainelibrary.org

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