Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 47
________________ सत्ताणवइमो संधि वसु वसुमइ छत्तरं वइसणउं उम्माहउ वारवइहे करेवि [3] भइ देह - भारु अजरामर - पुर- परमेसरेण लइ माए खमेज्जहि जामि तेत्थु जहिं सण सुम्मइ इंदियाहं - हिं इण विज्झइ णारि-रूवे कालिंद-भुवंगमु जहिं ण खाइ जहिं वेज्झु ण वेज्झइ अहिमुहेहिं जहिं जीवहो जीविउ सयल-कालु घत्ता आवासु करेवउ माइ मई अच्छणहं ण सक्कमिहत्थु हउं Jain Education International सव्वई मेल्लेवि जेम तिणु । गउ उज्जेतहिं णेमि - जिणु ॥ [२] लइ जामिमाए मं करि अवक्ख चउ-गइ-संसारावत्थ दिट्ठ सहियई दुक्ख णाणाविहाई अच्छिउ अणेय - सायर- पमाणु अच्छिउ वहु- समयई अणुससंतु अच्छिउ पज्जालिए जलण-जाले अच्छिउ वइतरणिहिं रुलुघुलंतु अवर - वि दरिसाविय दुक्ख लक्ख आउच्छिय जणणि जिणेसरेण उप्पत्ति-जरा-मरणई ण जेत्थु ण कसायहं मह - रिसि-निंदियाहं किमि-कीड-कुरुड-आसार-सारु डिज्जइ जहिं संसार - कूवे जम-काउ करोडिहिं जहिं ण ठा माणुसु मउ दुक्ख - सिलीमुहेहिं जहिं वसइ एक्कु पर सिद्ध- - कालु तहिं अजरामर देसडहिं । भव-संसार - किलेसडरं ॥ d हिंडिउ चउरासी - जोणि- लक्ख अणुहवि र णारयहं पिट्ठ गिव्वाण - महागिरि-सण्णिहाई जिह गोंदल झिंदुउ हम्ममाणु गिरि - चप्पिउ सिरे अंगई धुणंतु असि - सम-असिपत्त-वणंतराले खारुण्ह - कसायई जल पियंतु कंदंतह केण वि ण किय रक्ख - For Private & Personal Use Only ४ ४ www.jainelibrary.org

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