Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 52
________________ सत्ताणवइमो संधि अच्छंतु ताम वहु-सुमरणाई हउं सुमरमि दस-जम्मतराई घत्ता विंझाहिउ इब्भकेउ अमरु चिंतागइ माहिंदु पुणु। अवराजिउ अच्चुय-वसुहवइ पुणु जयंतु पुणु णेमि-जिणु ॥ [१२] उप्पणउं तइयहुं मगह-देसे अइ-विसम-विसमे कंदर-पवेसे तइयहुं हउं विंझे किराय-राउ वग्गुर-जाया-वरु धणु-सहाउ परिसक्कमि जाम वणंतराले गिरि-गहणे महा-दुम-वेल्लि-जाले उम्मग्ग लग्ग जिह वण-गइंद विमलामल-वुद्धि-महा-रिसिंद. ४ किर हणमि वे-वि विहिं सरेहिं जाम णिय-कंतए करयले धरिउ ताम सुणि राय-महा-गिह-रिद्धि-पत्तु किं सेट्टि ण-याणिउ रिसहदत्तु जउ पउम-संख-महकाल-काल चउ-णिहिय णिहेलणे सव्व-काल सो आयह अइ-पेसणु करेइ . आहार-दाणु अणु-दियहु देइ ८ वणयर ण होति रिसि उग्ग-तेय गइ कवण लेहसहि हणेवि एय घत्ता तं वयणु सुणेवि विंझाहिवेण स-सरु सरासणु छंडियउं । पुणु लइयइं पंचाणुव्वयई जेहिं भव्व-कुलु मंडियउं॥ [१३] गय जइवर जायइं सावयाइं दोहिं य पालियइं अणुव्वयाई एक्कहिं दिणे तुंबुरु-तरु-फलाइं वीणिय परिपक्कइं विरलाई अहि-भवण-भरोलिहिं एक्कु णटु तमि लिंतु काल-सप्पेण दट्ठ उप्पण्णु णियाण-णिवंध-हेउ सुउ पउम सिरिब्भहं इब्भकेउ जियसत्तु णराहिउ तहिं जे थामे सुप्पहा-महएवि रइ व्व कामे कमलप्पह दुहिय सयंवरेण पोढत्तणे परिणिय वणि-वरेण अवरुद्धी णवर वसंतसेण तहिं तणय जणिज्जइ पत्थिवेण णामेण मगहसुंदरि कुमारि अवइण्ण जुवाणहं णाई मारि णच्वंतिहे ताहे विचित्त-वेउ हक्कारउ पेक्खइ इन्भकेउ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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