Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 48
________________ rashif घत्ता णारइय- घाय- - घुम्मा वियउ उज्जेतहो जंतर माए - हउं [३] रय-समुद्दत्तिणएण तं कवणु दुक्खु जं मई ण पत्तु सो कवण जोणि जेत्त ण छुटु तं व विंधणु जहिं ण वद्धु तं कवणु सलिलु जगे जो ण धाउ तं व जंतु जेत्तण छुण्णु हम्मंतु हणंतु मरंतु जंतु मेल्लंतु लयंतु कलेवराई अज्जु - वि सुमरमि मुच्छणउं । तेण करमि आउच्छणउं ॥ घत्ता अद्भुवहे असारहे असरणहे कह-कह-व लडु मणुयत्तणउं [४] मणुयत्तणे तहि-मि महंतु दुक्खु विवरीय - सरीरु अणालवालु खंधोवखंध- १ -भुव-दंडड-डालु कर-पल्लव-ह- णव - कुसुम - भारु दुम्महिल-दु-लय-आलिंगियंगु दुवंधव - दुप्पारोह- वद्धु पंचेंदिय-चोर-गणावयासु धम्मु पावो ण भाइ Jain Education International जच्चंधु णउंस पंगुलउ उप्पण्णु अय- भवंतरेहिं घत्ता पुणु तिरिय - गइहे उप्पण्णएण जो कवणु पसु ण जहिं विहत्तु तं कवणु कलेवरु जं ण वूदु सो कवणु तिणंकुरु जं ण खद्ध सो कवणु सुजेत्तण जाउ तं कवणु कलुणु जं मई ण रुण्णु खज्जंतु खंतु दुक्खई सहंतु अच्छिउ अणेय जम्मंतराई तिरिय - गइहे कह तणउं सुहु । जामि माए मरिसिज्ज तुहुं ॥ जं जणु अम्हारिस- चंग - चक्खु सिर- केस - परिट्ठिय-मूल-जालु दुव्वयण- तिक्ख- कंटय करालु परमाउ- णिवंधणु परम - सारु ४ दुणंदण - दुष्फल - णिवह संगु दुव्वाहि-जरुदें हियहिं खड दुव्विसह विसय-विसहर - णिवासु कोहग्गे इज्झेवि खयहो जाइ - दूहउ जणणि- विवज्जियउ । तेण माए गमु सज्जियउ ॥ For Private & Personal Use Only ३९ ८ ८ www.jainelibrary.org

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