Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 36
________________ पंचाणवइमो संधि वरि वेल्लिहे तणउ सणेहडउ सा जइ पर मरणे ओसरइ क-वि कुसुमेहिं वंधइ वल्लहउ क-वि चूव-कुसुम-मंजरि खुडइ । काहे वि थणवट्टे लग्गु भमरु पल्लवियउ फलियउ फुल्लियउ जो को-वि अवरुंडिउ रुक्खडउ महु घइं पुणु पिउ अण्णहे वरइ मरु मारमि मरेण मरंति हउं सहुं ताए दुरेह-पंति पडइ णं थरहरंतु कंदप्प-सरु । णं वियउ जे लइउ णवल्लियउ लियर ८ घत्ता , मंद-मंद-गइउ मजण-मइउ गोविउ गोविंदाइ ठियउ। वण-विहारु करेवि जिणु करे धरेवि स-विलासउ सलिले पइट्ठियउ॥ ९ [१६] सव्वउ सव्वालंकारियउ परिभमिर-भमर-झंकारियउ सव्वउ फल-फुल्लालुद्धियउ कइयव-सोहग्ग-समिद्धियउ सव्वउ णव-जोव्वणइत्तियउ चंदण-घण-रसेण पलित्तियउ सव्वउ णह-दसण-वयंकियउ गंडुवहो वासालंकियउ सव्वउ झल-रवियर-तावियउ मयरद्धय-गुरु-णच्चावियउ सव्वउ परिसम-पासेइयउ कुसुमक्खलण-क्खय-खेइयउ सव्वउ सारंगि-परिग्गहिउ थण-भारोणामिय-विग्गहउ सव्वउ सहसत्ति णिवुड्डियउ णं जलेण लेवि अवरुंडियउ घत्ता भावालिंगणेहिं परिचुंवणेहिं जंणेमि-कुमारहो लग्गियउ। वरुणु विवोहियउ मणे मोहियउ णं जोयई करेवि विणिग्गउ । [१७] काहे-वि कडिल्लु उत्थल्लियउ णं वम्मह-तोरणु हल्लियउ काहे-वि उग्घाडिउ रमण-मुहु णं मोक्ख-वारु अपरिमिय-सुहु काहे-वि रोमावलि मंडविय णं अलि-रिंछोलि स-मंडविय काहे-वि दिट्ठई थण-मंडलई णं जल-मयगल-कुंभत्थलई काहे-वि मुह-पंडु समुट्ठियउ मउलेविणु कमल-संडु ठियउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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