Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 41
________________ 3. रिट्ठणेमिचरिउ घत्ता मज्जाय मुक्क भयरहरेण दिसउ फुडंति गयणु भमइ। करवालु लइउ गोविंदेण जाय विसंठुल वारवइ । तो जाणाविउ आउह-पाले पूरिउ पंचयण्णु हु वालें तुम्हहिं सव्व जेण सहुं कीलिय जसु जंववइए पोत्ति ण पीलिय तिहुयणु तेण कुमारे भामिउ मलिय भुवंग-सेज धणु णामिउ भणइ जणद्दणु कवड-सणेहउ हउं धण्णउ जसु भायरु एहउ जसु तइलोक्कु णमइ सव्वंगें तहो किर कवणु गहणु सारंगें जसु अंगुलिय-वि वलेवि ण तीरइ तासु भुवंगमेहिं किं कीरइ जो गिरि मेरु तलप्पइ चूरइ सो किं पंचयण्णु णाऊरइ मंछुडु जाय वुद्धि परिणेवए रमणि मणोहर- गणि रमेवए घत्ता जइ इंदिय-विसय-वसंगउ कह-वि तवोवणु परिहरइ । तो तिहुवणु अम्हहुं भुंजइ इंदु-वि परम सेव करइ ।। - अहो अहो कामपाल जग-सारहो किज्जइ पानिग्गहणु कुमारहो जाहं जाहं घरे काह-मि कण्णउ लढि-लायण्ण-वण्ण-संपण्णउ संजुगीण सुकुलीण पहाणा लहु मेलावहि ते ते राणा एम भणेवि गउ तहिं उच्छाहें पूरिउ पंचयण्णु जहिं णाहें ४ किय पसंस पर तुम्हहं छज्जड़ को अहि-सेज्जहिं अवरु णिमज्जइ कंवुअ-कंठु केण पूरिज्जइ केण सरासणु दुगुणीकिज्जइ अवरहो कहो एवड्डु परक्कम महिम-महणु भाउ वलु विक्कम णिग्गय वे-वि महाउह-सालहो णं गयवर गिरि-विसम-खयालहो ८ घत्ता वलु धवलउ मज्झे परिट्ठियउ कसणहं जिण-णारायणहं । लक्खिजइ जायव-लोएण चंदु णाई विहिं णव-घणहं ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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