Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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छण्णवइमो संधि
४
तो संकरिसणेण पिय-पुव्वेहिं लेह-जोह-पाहुडेहिं अउव्वेहिं संमाणिय णरिंद ते आइय णाणाविह-वाहणेहिं पराइय अंतेउरेहिं विलासिणि-सत्थेहिं मालइ-माला-कोमल-हत्थेहिं वत्थाहरण-विहूसण-वित्तेहिं . चामर-छत्त-चिंध-वाइत्तेहिं दुसावासेहिं विविह-पयारेहिं कोस-महाणस-कोट्ठागारेहिं मंदुर-हत्थिसाल-सुहि-सालेहिं छप्पर-चउरी-घरेहिं विसालेहिं चच्चर-हट्ट-मग्ग-चउहट्टेहिं पण्ण-फुल्ल-फल-संखा-टिंटेहिं दोसिय-गंधिय-गंधव-सारेहिं । कंदुइ-पेडइएहिं पसारेहिं णरवइ णिरवसेस आवासिय चंदाइच्च-णाग-णल-वंसिय
घत्ता छड-तोरण-मंडव-कणिसेहिं रंगावलियहिं मंगलेहिं । आढत्तु विवाहु कुमारहो आयहिं लीलहिं हरि-वलेहिं ।।
[८] अणेत्तहे पेसिय वर तलवर तेहिं सयल मेलाविय वणयर वल्लरि-कंटय-रुक्ख-सहासेहिं तट्टी-वेढउ किउ चउ-पासेहिं हंस-मइंद-चक्क-मय-मोरहं खमइ कोपि किं अवयव-चोरहं मई धर धरिय भणेवि वोलंतउ सूयारु तेण णाई दुहु पत्तउ मई ससहरे णिय णाउं चडाविउ ससउलु तेण णाई संताविउ सुरवाहण-गव्वेण महाइय वणयर तेण णाई संताविय णक्क-गाहोहार-रउद्दहो अम्हेहिं कड्डिय वेय समुद्दहो अलिय-अवग्गल-दुण्णय-भरियइं तेण णाई मीण-उलइं धरियइं
घत्ता खडु खंतई वणे णिवसंतई अवर-तत्ति-परियत्ताई। णिद्दोसइं आमिस-कारणे मिगइ मि वंधु ण पत्ताई ।।
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