Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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पंचाणवइमो संधि
घत्ता
दुव्वयणई सुणेवि अंगई धुणेवि
रुप्पिणिए णिवारिय जंववइ ।
मं अहिधिवहि हले जिणे अतुल-वले कहिं लग्गइ तेरउ चक्कवइ ॥
[२०]
- जिणेसरहो
आरुट्ठो परममयरहरु जासु जल- विंदुवउ गयणयलु विहत्थी - मेत्तडउ
-
इह लोक्क - सिहरु जसु वइसणउं गिरि - मसयहं अंतरु जेत्तडउं किं परं ण दिड्डु णिय-दइय-वलु जहिं जिणेण पसारिय वाहुलिय तं रुप्पिणि-जंववइहिं तणउं
को मल्ल जग-तय-सेहरहो गिव्वाण महागिरि कंदुवउ
महि-मंडलु गोप्पर जेत्तडउ
घत्ता
गउ जिणु मणे धरेवि वणु परिहरेवि संखाउरणउं हरि पूरणउं
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होसइ सिद्धालए पइसणउं तित्थयर - रहंगिहिं तेत्तडउं
जुज्झणहं समिच्छिउ करेवि छलु तहिं चलेवि ण सक्किय अंगुलिय णिसुणेवि अवरोप्परु हलहणउं
***
इय रिट्ठणेमि - चरिए - धवलइयासिय सयंभुएव - कए पंचम ॥
स जणद्दणु स-वलु दुवारवइ । आढवइ सयं भुअणाहिवइ ॥
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