Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 27
________________ १८ एय चवंत परोप्परु धाइय घत्ता वंध-करण -कइयव - कुसलु दविड- विलासिणि- सुरउ जिह [१८] विणि-वि वावरंति सम - घाएहिं वच्छदंत-थिय (?) - थूणाकण्णेहिं जुज्झिता जाम हु छाइउ जुज्झिय ताम जाम चमु चूरिय जुज्झिय ताम जाम सर घोसिय जुज्झिता जाम ध खंडिय जुज्झिता जाम पुणु उट्ठिय जुज्झिय ताम जाम रुहिरोल्लिय घत्ता जुज्झिय ताम जाम समरे रुहिर - समुद्दे तरावियई Jain Education International [१९] तो माहवेण महाहवे ताडिय वे उव्वरिय सीसु किर छिंदइ देव देव अहो देव - परायण वरु अणिरुद्धु ससुरु मयरद्धउ तो - विणिहम्मइ वप्पु महारउ कुसुमवाण-करुणामय - सित्तेंरणु दिण्ण कण्ण अणिरुद्धहो वाणें किउ कर गहणु सइंदहो णावइ अच्छर अमर णिहाला आइय सर-घाय - मुच्छ - उप्पायणु । रणु जाउ वाण-णारायणु ॥ णच्चियां अणेय - कवंधई । छत्तई धय- चामर - चिंधई ॥ वाह वाह रहंगें पाडिय रायउत्ति तहिं अवसरे कंदइ देहि जणेर - भिक्खणारायण तुहुं भत्तार - पियामहु लद्धउ जीवइ सुय-संवंधि तुहाउ परिहरिउ भाम-वरइत्तें सहु हियइच्छिण अण्णाणें गय जण्णत्त पत्त दारावइ रिडणेमिचरिउ तीरिय- तोमर - खुर-णाराएहिं ओएहिं अवरेहि-मि अण्णण्णेहिं वाण-जालु केत्तहि-मिण माइउ हय-गय- णरवरिंद सर - पूरिय सुर र रिक्सेस परिओसिय चामर - छत्तेहिं रण-महि मंडिय घण घण-पहरणोह- परिणिट्ठिय स- गिरिस - सायर वसुमइ डोल्लिय ८ For Private & Personal Use Only ८ ९ ४ ९ ४ ८ www.jainelibrary.org

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