Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 30
________________ पंचाणवइमो संधि जत्थ य अणंग-पिहिय-द्धय-चूय-णव-कुसुम-मंजरी-रेणु-पुंज-पिंजरिय-मुहलकल-कोइलालाव-दिण्ण-दुह-झीण-गयवइ-गुरु-णियंव-परिगलिय-मेहला-दामं दीसइ जणेण सहसत्ति सुत्त-गोवाहि-वलयं व। जत्थ य मणोहरागय-वसंत-संगम-पभिण्ण-करि-करड-तड-विणिग्गंतमहुयरायण-मय-सरी-पउर-पूरंत-वाहिणी-वाहिणि-मजाविओ स-मुद्दा विणच्चइ महल्ल-कल्लोल-करयलो मत्तवालो व्व।। जत्थ य विलासिणी-रय-विलास-कवरी-णिवद्ध-परिगलिय-सुरभि-णव-कुसुमरेणु-कप्पूर-पउर-तंबोल-वहल-परिमिलंत-मत्तालि-वलय-झंकार-मणोहरालाविणी-कलुग्गयंत-कंदप्प-कण्ण-कंडुयण-पेहुणं पिव सुहावेइ ॥ ६ [छम्मालागाहो णाम छंदो] घत्ता तहिं तेहए समए तामरसमए माहव-दंसण-मय-मुइय-मइ। पल्लव-लोल-कर लद्धावसर णं णच्चिय सरहस वारवइ॥ ७ अत्थाणे परिट्ठिउ चक्कहरु अणिरुद्ध संवु सच्चइ पवरु आलाव जाय तो जायवहं अवरेहिं पोमाइउ महुमहणु रह-चूरणु रिट्ठ-कंठ-दलणु चाणूर-कंस-चेझ्य-महणु अवरेहिं अणिरुद्धहो दिण्णु जउ वलु अवरेहिं अवरेहिं पंचसरु जं आयहो वलु तं णेक्कहो-वि तित्थंकर हलहरु कुसुमसरु अंकूर विओरहु गउ अवरु वण्णिय वलइं तहिं पंडवहं गोवद्धण-गरुय-भर-उव्वहणु 'कालिय-सिर-सेहर-दरमलणु जरसंध-कयंत वाण-दमणु अवरेहिं वण्णिउ सिणि-तणय-मउ हलहरेण पसंसिउ तित्थयरु ण मियंकहो अक्कहो सक्कहो-वि घत्ता पभणइ महुमहणु परिकुविय-मणु मइं चंगउ विक्कमु वुज्झिउ। अपमेय-वलु संभरइ छलु सो अच्छइ कवणु अ-जुज्झिउ॥ १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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