Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 32
________________ पंचाणवइमो संधि णं उक्क णहंगण-आयवहो णं करण-लट्ठि अइरावयहो णं णव-णीरहरहो विज्जुलिय णं भव-मयरहर-विरोलणिय णं भव्वाभव्व-गवेसणिय णं डाल महा-वड-पायवहो णं तडिणि महा-कुल-पावयहो णं जिणवर-धम्महो जीव-दय णं पुण्ण-पाव-भर-तोलणिय णं मोक्ख-मग्ग-दरिसावणिय ++ ++ +++ ++++ ++ घत्ता अच्छउ भुय-णय-लइय अइ-वलवइय कंचण-केऊरालंकिय। जिणहो जणद्दणेण महुमहणेण अंगुलिय-वि वलेवि ण सक्किय ॥९ ४ ८ णीलुप्पल-मरगय-सामलिय जंवलेवि ण सक्किय अंगुलिय तं मउलिउ महुमह-मुह-कमलु दसण-च्छवि-केसरु अहर-दलु गउ णाहु णिहेलणु अप्पणउं आढत्तु अणंतें मंतणउं असरालु वालु अपमेय-वलु ता अच्छउ वाहु-दंड-जुयलु जसु वलेवि ण तीरइ तज्जणिय सो वसुमइ हरइ महुत्तणिय ' संकरिसणु पभणइ कवणु डरु एहु धुउ वावीसमु तित्थयरु ण करेइ रज्जु तइलोक्क-गुरु इह भवे पावेसइ मोक्ख-पुरु हरि हरिसिउ तो वरि करमि तिहं अरेण तवो-वणु जाइ जिहं घत्ता जायव मेलवहो जले खेलवहो आढवहो कुमारहो परिणयणु। पेक्खेवि सावयई वहु-भय-गयई चिंतवइ जेण परिणिक्खवणु॥ [८] णारायण-मणे जं जेम थिउ अण्णहिं वासरे तं तेम किउ उववण-विहार-तूरइं हयइं जय-णंद-वद्ध-माण-सयइं हरि-वल पयट्ट उज्जेत-गिरि पेक्खणहं अउव्व वसंत-सिरि अणिरुद्ध-संवु-पज्जुण्ण गय अंकूर-विओरह-सिणितणय स-कलत्त दसारुह दस-वि जण अवर-वि जायव वण-रमण-मण ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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