Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 31
________________ रिटुणेमिचरिउ [४] उप्पण्णु कोउ तो हलहरहो अहिखेउ ण किजइ जिणवरहो परमेसरु सव्व-जणत्ति-हरु तइलोक्कहो णाहु ति-णाय-धरु जइ कह-वि ण उब्भइ धरणियलु तो किं णासइ तहो तणउं वल जइ थाणहो ण चलइ मेरु-गिरि तो किं फिट्टइ तहो तणिय सिरि ण मुअइ मज्जाय समुद्द जइ तो किं ण होइ सरियाहिवइ जइ उप्परि पडइ ण घण-पडलु तो किं ण होइ तं गयणयल जइ पवणु ण दावइ अप्पणउं किं फिट्टउ घणहं झडप्पणउं जइ ण डहइ सिहि तो किं सु लहु जइ इह ण इंदु तो किं ण णहु घत्ता सच्चउ धीरिमउ गंभीरिमउ विक्खंभ-वलइंदुच्चालियइं। तावं जि सारइं गरुयारइं तवंतेहिं जावं ण मइलियइं॥ णारायणु पभणइ कोड्डु महु जाणिजइ कहो केत्तडउं वलु सक्कंदणु मज्जण-वालु जसु जसु ण्हवण-वीढु गिव्वाण-गिरि किर कवण केलि तउ तेण सउं पाविहसि जंण पत्तो सि हरि तुहं मसउ महा-गिरि णेमि-जिणु हेवाइउ महुमहण + र-मुरेहिं जुज्झेवउ सिवि-णंदणेण सहुं वलएवहो वियसिउ मुह-कमलु खीरोवहि-खीर-भरिय-कलसु कम-कमलेहिं वसइ तिलोय-सिरि ४ जो अव्वउ अक्खउ परम-पउ महु तणउं णिवारिउ कियउ वरि जुज्झेवउ कवणु वलेण विणु जरसंध-कंस-वाणासुरेहिं घत्ता अच्छउ विहिं रणु करि महु वयणु णह-कुलिस-कोडि-किरणुजलिय। तो तई सव्वु किउ तइलोक्कु जिउ जइ वलिय कुमारहो अंगुलिय॥ ९ जं एम पयंपिउ हलहरेण णं णिग्गय णाइणि चंदणहोणं तं वाह पसारिय जिणवरेण वज-सूइ सक्कंदणहो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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