Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 29
________________ वाण-1 - विमद्दणहं पंचाणवइमो संधि सज्जन-णंदणहं अणिरुद्ध-मयण-संकरिसणहं । - फलु कुसलाकुसलु णं आउ वसंतु गवेसणहं ॥ १ [१] ताह - मि विजय पइसरइ वसंतु लद्ध-पसरु कलु कोइल-कलयलु उच्छलिउ धाइ सीय मंथर-गमणु जय कमल रइ-मंदिरई हिंदोलउ गिज्जइ सुंदरिहिं पव-मंडव देति अणाणियइं पाणिउ झरंति णिज्झर-झरइं गज्जइ स-मुद्द स-वसंत - सिरि णंदणु कुसुमसरु वच्छत्थले वर सिरि घत्ता Jain Education International णव - कोमल - कोंपल जाय तरु दमणुल्लउ दिज्जइ णव - फलिउ णव- चंदणहु दाहिण -पवणु परिमल - पहि- इंदिंदिरई वज्जंति मुयंगा चच्चरिहिं पंथियहं इक्खु - रस - पाणियई वेणवउ देति णं वहु-परइं मउरिउ कुसुमिउ उज्जेत - गिरि तित्थयरु स - हलहरु भाइणरु । रइ-वहु-वरु साहीण- सिरि सई माह अवसें एइ घरु ॥ ९ [२] जत्थ पयंड-पंडुच्छु-दंड-खंडाहि - घाय - उच्छलिय - सरस-मायंद-गोंदि - णिद्दलिय - कलम- कणिस - हल-भार-भज्जंत - भिसिणि- पब्भार- भिडण - भंगुरिय- भमरभमरोली दीसइ घोलंती पंथिएहिं वण-लच्छि-वेणि व्व । जत्थ य णवल्ल-कंकेल्लि-मल्लिया - तिलय-वउल- पुन्नाय चंपय-विणिद्द - रुंदारविंदमयरंद-मंद-णीसंद-संदोह कंदरिदिंदिरावली-भमई- विब्भलुब्धंता दीसइ वसंतलच्छीए रोम-र‍ -राइ व्व पहिएहिं ॥ जत्थ य णीसंत - णिम्मल - पहाय सीयल-सुगंध-मंथर-वहंत- गिरि-मलयमारुयंदो [लि] - दुम-वण- वोढ-मोघाय - णिहसणुड्डीण मत्थि - थिप्पंत- थोर-महुथेव-भरिय-णलिणि-उडं पिज्जंत पंथियहिं हि धुत्ती - अहर व्व धुत्तेहिं । - - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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