Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 33
________________ रिठ्ठणेमिचरित चलियई सव्वई अंतेउरई सकलाव-सडोर-सणेउरई धय-चामर-छत्त-विहूसियई सवियार-वेससरमासियई भलउलई(?) ताम पधाइयइं गंधव्वई कहि-मि ण माइयइं ८ घत्ता मुहई विलासिणिहिं पिय-भासिणिहिं सिरिखंड-पंक-धवलीक्यिई। णिएवि ण भमर थिय अवहेरि किय कउ कमल-दसण-पयंकियइं॥ ९ [९] ८ विणिएवि णरिंदंतेउरई जायई रिच्छियइं भयाउरई हंसउलई कहि मि समुट्ठियई गइ-चोर होति जे दुट्ठियइं ण परिट्ठिय चक्कवाय णइहे ण पहुत्तणाई थण-संगइहे कमलई विमलई ण छज्जियई णं कामिणि वयण-परज्जियइं मलयाणिलु मुह-पवणाहिहउ तं देसु वि छंडेवि णाई गउ कलकंठिउ कल-कंठिहिं जियउ णीसद्दउ होएवि णं थियउ हरिणई णासंति पलज्जियई णं णारी-णयण-सोह-जियई सिहिउलई कलाव-किलामियई णं णट्ठई चिहुरोहामियई __ घत्ता अवयव-चोरियहिं विणु गोरियहिं वणे पइसेवि जाइं जियंताई। ताई पणट्ठाई उत्तट्ठाई अवरई वसंति णिच्चिंताई। [१०] कत्थइ दासेरउ आरडइ कत्थइ कंठाल-मलव पडइ कत्थइ मंदुरियहं कलहणउं उस्सारे तुरंगमु अप्पणउ महु तणउ तुरंगमु जाउ वरि मारेसइ णवर णरिंद-करि संकडए पंथे णं दोण्णि थिय अवरोप्परु पाडावाडि किय अवरहं पवहणइं पणट्ठाई । अवरें वलिवंडे घट्ठाई अवरहं कर-कंडई लग्गाई अवरहं रह-चक्कई भग्गाई अवरहं सेहरई विहट्टाई अवरहं आहरणइं तुट्टाई अवरहं पडियई कडिसुत्ताई अवरहं पावरणइं गुत्ताई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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