Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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चणवइमो संधि
भुवण - भयंकर-कर-परिहच्छे धणु फेरंतु फुरंतु पधाइ
घत्ता
जं अणिरुद्ध उव्वरिउ पर- वलु घोलाघोलि किउ
[१६]
ण - विकण्ण-जाउ तहो दिज्जइ देव देव दारावर जेत्तहे आणिउ ताएं अणंगहो णंदणु दुहिय तुहारी लइय विवाहें हिउ जेण चक्काहिउ विग्गहें दुक्करु जिणणह जाइ रणं तहो तो विज्जाहर - सेण - पहाणें को
णारायणु को तालद्ध
घत्ता
अच्छमि वइरि वहंतु किर महुस जे समावडिय
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एम भवि विज्जाहर - णाहें लइयई पंच सय कोयंडहं धाइउ हणु भणंतु गोविंदहो आइउ सिरु वहंतु णिय-खंधे गिरि - गोवद्धणेण उद्धरिएं
हउं पुणु वाणु पहाणु णरिंदहं भणइ अणंतु अज्जु सई हत्थें
तं कोव - कसायाउण्णेहिं णारायण - वल-पज्जुण्णेहिं ||
पूरिउ पंचयण्णु सिरि-वच्छे वाहिं वाणु णिरंतरु छाइउ
[१७]
णिरवसेसु वित्तंतु कहिज्ज रणिहिं चित्तलेह गय तेत्तहे तरुणी-घण - थणवट्ट-विसट्टणु कवण केलि सहुं पंकयणाहें सो किं चड ण यिय- परिग्गहें वलिकिज्जउ थुइ - वाउ अणंतो णिय- भुय - सहसु विउव्विउ वाणें को अणिरुद्ध को व मयरद्धउ
अज्जु कल्ले पडिलग्गमि । सिर- सेज्जहे किह ण वलग्गमि ॥
सुरवर - जयसिरि-संगम - लाहें करे करे लक्खु लक्खु किउ कंडहं जंतु इंदु मदहो
हरि वा तुहुं जरसंधे कालिय- सेहरेण जज्जरिएं
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लायम परं जरसंधहो पंथें
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