Book Title: Ritthnemichariyam Part 4 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ चउणवइमो संधि १० घत्ता तेण-वि ते एक्कल्लएण जय-लच्छि -वरंगण-लुद्धे। हरिणइं हरिणाहिवेण जिह णरवर णिरुद्ध अणिरुद्धं ॥ [१२] णवरि य गुरु-संपहारो पहायम्मि पारंभिओ तेण तेहिं पढुक्कंत-लल्लक्क-पाइक्क-मुक्केक्कहुंकार संकायणो। अणवरय-रसंत-गंभीर-भेरी-दडी-झल्लरी-काहला-ली+मु-ताल-तालोलिसंखोह-ढक्केक्क-पाणी-समुटुंत-कोलाहलो॥ हय-खुर-खय-खोणि-खुब्भंत-धूली-कयंधार-पब्भार-पूरिज्जमाणंधरा होय-दूरंतउद्देस-ओसारिआसेस-देवासुरो। सरहस-अणिरुद्ध-दोदाहिणंगुट्ठ-सव्वंगुली-गाढ-गीढासिधारा-णिहम्मंत-मायंगकुम्भत्थलाभोय-णिग्गन्त-मुत्ताहलो ॥ कहिं-पि आहया हया वसुंधरं गया गया कहिं-पि वाण-किंकरा कया णिरंधि णिक्करा कहिं-पि भग्ग-संदणा ठिया णरिंद-णंदणा कहिं-पि छिण्ण-गत्तया पडत आयपत्तया कहि-मि कुद्ध-अणिरुद्ध-छाइया जहिं पडंति भड-थड-णिहाइया कहि-मि सकवय-ससिक्क-जायया दोण्णि दोण्णि दीसन्ति भायया कहि-मि जाय रणमहि एक्कंगिणी कहि-मि पहाविय रत्त-तरंगिणि कहि-मि कवंध-णिवहु णच्चाविउ णहे गिव्वाण-सत्थु तोसाविउ घत्ता एक्केण जे वसुणंदएण एक्केण जे वर-करवालें। सुण्णउ सोणीपुरु करेवि जम-रुडु वसाविउ कालें। [१३] केण-वि कहिउ ताम तहो वाणहो देव देव एक्कहो जे जुवाणहो हय गय रह सामंत समत्ता सयल-वि समर-वसुंधरि पत्ता णउ सामण्णु को-वि सो वालउ रणमुहे वावरंतु असरालउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122